"डिंगल": अवतरणों में अंतर
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अब हालत ये है कि डींगल भाषा में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों को पढ़ने की योग्यता रखने वाले बहुत कम लोग रह गए हैं।
कभी डींगल के ओजपूर्ण गीत युद्ध के मैदानों में रणबाँकुरों में उत्साह भरा करते थे लेकिन वक़्त ने ऐसा पलटा खाया कि राजस्थान, गुजरात और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के कुछ भागों में सदियों से बहती रही डींगल की काव्यधारा अब ओझल होती जा रही है. प्रसिद्ध साहित्यकार डॉक्टर [[लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत]] चिंता के स्वर में कहती हैं कि यही हाल रहा तो डींगल का वजूद ही ख़तरे में पड़ जाएगा.
साहित्यकार [[पूनमचंद बिश्नोई]] कहते हैं कि पहले डींगल को सरकारी सहारा मिलता था और यह रोज़गार से जुड़ी हुई थी पर अब ऐसा नहीं है.
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