"ब्रह्माण्ड पुराण": अवतरणों में अंतर

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== विस्तार ==
 
यह पुराण भविष्य कल्पों से युक्त और बारह हजार श्लोकों से युक्त है,इसके चार पद है,पहला प्रक्रियापाद दूसरा अनुषपाद तीसरा उपोदघात और चौथा उपसंहारपाद है। पहले के दो पादों को पूर्व भाग कहा जाता है,तृतीय पाद ही मध्यम भाग है,और चतुर्थ पाद को उत्तम भाग कहा गया है। पुराणों के विविध पांचों लक्षण 'ब्रह्माण्ड पुराण' में उपलब्ध होते हैं। इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय प्राचीन भारतीय ऋषि जावा द्वीप वर्तमान में इण्डोनेशिया लेकर गए थे। इस पुराण का अनुवाद वहां के प्राचीन कवि-भाषा में किया गया था जो आज भी उपलब्ध है।