"वराहावतार": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2011}}[[चित्र:VarahaBP.jpg|thumb|right|300px|वराह अवतार- अलवर में प्राप्त एक मिनियेचर कलाकृति]]'''दिती का गर्भधारण'''
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[[चित्र:VarahaBP.jpg|thumb|right|300px|वराह अवतार- अलवर में प्राप्त एक मिनियेचर कलाकृति]]'''दिती का गर्भधारण'''
 
एक बार मरीचि नन्दन [[कश्यप]] जी ने भगवान को प्रसन्न करने के लिये खीर की आहुति दिया और उनकी आराधना समाप्त करके सन्ध्या काल के समय अग्निशाला में ध्यानस्थ होकर बैठे गये। उसी समय [[दक्ष]] प्रजापति की पुत्री [[दिति]] कामातुर होकर पुत्र प्राप्ति की लालसा से कश्यप जी के निकट गई। दिति ने कश्यप जी से मीठे वचनों से अपने साथ रमण करने के लिये प्रार्थना किया। इस पर कश्यप जी ने कहा, "हे प्रिये! मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छानुसार तेजस्वी पुत्र अवश्य दूँगा। किन्तु तुम्हें एक प्रहर के लिये प्रतीक्षा करनी होगी। सन्ध्या काल में सूर्यास्त के पश्चात् भूतनाथ भगवान [[शंकर]] अपने भूत, प्रेत, राक्षस तथा यक्षों को लेकर बैल पर चढ़ कर विचरते हैं। इस समय तुम्हें कामक्रीड़ा में रत देख कर वे अप्रसन्न हो जावेंगे। अतः यह समय सन्तानोत्पत्ति के लिये उचित नहीं है। सारा संसार मेरी निन्दा करेगा। यह समय तो सन्ध्यावन्दन और भगवत् पूजन आदि के लिये ही है। इस समय जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं वे नरकगामी होते हैं।"