"गुरु हर किशन": अवतरणों में अंतर

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[[File:Sri Guru Har Krishan Ji Gurudwara Pothi Mala.jpg|thumb|श्री गुरू हर किशन साहिब जी ]]
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'''गुरू हर किशन सिंह''' [[सिख|सिखों]] के आठवें [[गुरू]] थे।
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== गुरुपद प्राप्ति ==
८ वर्ष की अल्प आयु में गुरू हर किशन साहिब जी को गुरुपद प्रदान किया गया। गुरु हर राय जी ने १६६१ में गुरु हरकिशन जी को अष्ठम्‌ गुरू के रूप में स्थापित किया। इस प्रकार से नाराज होकर राम राय जी ने [[औरंगजेब]] से इस बात की शिकायत की। इस बावत शाहजांह ने राम राय का पक्ष लेते हुए राजा जय सिंह को गुरू हर किशन जी को उनके समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया। राजा जय सिंह ने अपना संदेशवाहक कीरतपुर भेजकर गुरू को दिल्ली लाने का आदेश दिया। पहले तो गुरू साहिब ने अनिच्छा जाहिर की। परन्तु उनके गुरसिखों एवं राजा जय सिंह के बार-बार आग्रह करने पर वो दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गये।
[[File:Gurudwara Panjokhra Sahib, Haryana.jpg|thumb|Gurudwara Panjokhra Sahib, Haryana]]
 
इसके बाद पंजाब के सभी सामाजिक समूहों ने आकर गुरू साहिब को विदायी दी। उन्होंने गुरू साहिब को [[अम्बाला]] के निकट पंजोखारा[[गुरुद्वारा श्री पंजोखरा साहिब| पंजोखरा]] गांव तक छोड़ा। इस स्थान पर गुरू साहिब ने लोगों को अपने अपने घर वापिस जाने का आदेश दिया। गुरू साहिब अपने परिवारजनों व कुछ सिखों के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुये। परन्तु इस स्थान को छोड़ने से पहले गुरू साहिब ने उस महान ईश्वर प्रदत्त शक्ति का परिचय दिया। लाल चन्द, हिन्दू साहित्य के प्रखर विद्वान एव आध्यात्मिक पुरुष, ने गुरू साहिब से गीता का अर्थ पूछा। गुरू साहिब जी ने पानी लाने वाले एक व्यक्ति छज्जु राम को बुलाया और जिनके द्वारा संपूर्ण गीता सार सुनाकर लाल चन्द को हतप्रभ कर दिया। इस स्थान पर आज के समय में एक भव्य गुरुद्वारा सुशोभित है। इसके पश्चात लाल चन्द ने सिख धर्म को अपनाया एवं गुरू साहिब को कुरूक्षेत्र तक छोड़ा। जब गुरू साहिब दिल्ली पहुंचे तो राजा जय सिंह एवं दिल्ली में रहने वाले सिखों ने उनका बड़े ही गर्मजोशी से स्वागत किया। गुरू साहिब को राजा जय सिंह के महल में ठहराया गया। सभी धर्म के लोगों का महल में गुरू साहिब के दर्शन के लिए तांता लग गया।
 
== जीवन के प्रसंग ==