"विश्वरूप": अवतरणों में अंतर

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'''विश्वरूप''' अथवा विराट रूप भगवान [[विष्णु]] तथा [[कृष्ण]] का सार्वभौमिक स्वरूप है।<ref>[http://mobi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA_(%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81) विश्वरूप (विष्णु)], भारतकोश</ref> इस रूप का प्रचलित कथा [[भगवद्गीता]] के अध्याय 11११ पर है, जिसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को [[कुरुक्षेत्र युद्ध]] में विश्वरूप दर्शन कराते हैं। यह युद्ध [[कौरव|कौरवों]] तथा [[पाण्डव|पाण्डवों]] के बीच राज्य को लेकर हुआ था। इसके संदर्भ में [[वेदव्यास]] कृत [[महाभारत]] ग्रंथ प्रचलित है। परंतु विश्वरूप दर्शन [[राजा बलि]] आदि ने भी किया है।
 
भगवान श्री कृष्ण नें गीता में कहा है--
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'''अर्थात्''' हे पार्थ! अब तुम मेरे अनेक अलौकिक रूपों को देखो। मैं तुम्हें अनेक प्रकार की आकृतियों वाले रंगो को दिखाता हूँ।<ref>[[भगवद्गीता|गीता]] 11११/05०५</ref>
 
[[चित्र:Krishnaarjunmahabharata.jpg|thumb|right|300px|[[कुरुक्षेत्र]] में [[कृष्ण]] और [[अर्जुन]] युद्ध के लिये तत्पर।]]