"विश्वरूप": अवतरणों में अंतर
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== रूप ==
{{double image|right|Shivas Kinder - 0191.jpg|210|Vishnuvishvarupa.jpg|200|बाएँ: विश्वरूप, दाएँ: कई हाथ तथा पैरों वाले भगवान विश्वरूप
महाभारत में [[संजय]] को दिव्यदृष्टि प्राप्त हुई जिससे वह कुरुक्षेत्र का हाल [[धृतराष्ट्र]] को कहने लगा।
कुरुक्षेत्र में विश्वरूप का दर्शन करने का सौभाग्य अर्जुन को मिला।
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संजय धृतराष्ट्र के समक्ष भगवान विराट के स्वरूप का वर्णन करता है--
'''अनगिनत नेत्रों से युक्त प्रभु नारायण अनेक दर्शनों से संपन्न हैं। कई प्रकार के दिव्य अस्त्र शस्त्र धारण कियें हैं, दिव्य आभूषण तथा अद्भुत सुगंध से युक्त प्रभु सुशोभित हैं। अनेक अश्चर्यों से युक्त हैं। सीमारहित (असीमित आकार वाले) तथा किसी एक दिशा में नहीं भगवान सभी दसों दिशाओं की ओर मुख किये हैं।
कदाचित् प्रभु विश्वरूप से उत्पन्न प्रकाश की बराबरी आकाश में अनगिनत सूर्योदय हो तब उनसे निकला प्रकाश ही कर पाएँ।'''<ref>[[भगवद्गीता]] विश्वरूपदर्शनयोगनामैकादशोध्याय: श्लोक
भगवान में अदिति के
{{double image|right|A Vishva-rupa print.jpg|210|WLA vanda Vishnu as the Cosmic Man.jpg|200|बाएँ:
भगवान विश्वरूप अनगिनत हाथ तथा अस्त्र वाले हैं। उनके हाथों में शंख, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष तथा नंदक तलवार शोभायमान हैं। विश्व के हर जीव, मनुष्य, मुनी, विभिन्न देवता आदि उनके अंदर हैं। उनमें कौरव, पाण्डव तथा समस्त कुरुक्षेत्र दिखाई दे रहा है। केवल दिव्य दृष्टि का उपयोग कर एक धन्य मानव उस अद्भुत स्वरूप का दर्शन कर सकता है तथा प्रभु के परम् भक्तों में ही उस स्वरूप को देखने की क्षमता है। परंपिता का यह स्वरूप साधारण मानव के लिये अत्यंत भयावह है।<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/Vishvarupa#Literary_descriptions Literary descriptions]</ref>
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