"विश्वरूप": अवतरणों में अंतर

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इसी प्रकार अन्य ज्ञान देते हैं। गीता के विश्वरूप दर्शन योग नामक 11वें११वें अध्याय में भगवान द्वारा अर्जुन को विश्वरूप दर्शन देने के विषय में विस्तारपूर्वक बताया गया है।
 
अर्जुन द्वारिकाधीश से उनके अद्भुत रूप के दर्शन हेतु आग्रह करते हैं। भगवान कृष्ण नें अर्जुन को दिव्यदृष्टि दी क्योकी इस दिव्य स्वरूप का दर्शन साधारण नेत्रों से असंभव है। भगवान ने कहा, "पार्थ! सावधान हो जाओ। तुम मेरे अनेक रूपों को देखो, ब्रह्मांड को देखो, जो देखना चाहो वह मुझमे देखो, स्वयं को मुझमें देखो।"