"अमरकोश": अवतरणों में अंतर

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'''अमरकोष''' (या अमरकोश) [[संस्कृत]] के कोशों में अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इसे विश्व का पहला [[समान्तर कोश]] (थेसॉरस्) कहा जा सकता है। इसकीइसके रचनाकार [[अमरसिंह]] बताये जाते हैं। इस कोश में प्राय: दस हजार नाम हैं, जहाँ [[मेदिनीकोश|मेदिनी]] में केवल साढ़े चार हजार और [[हलायुध]] में आठ हजार हैं। इसी कारण पडितोंपंडितों ने इसका आदर किया और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई।
 
== संरचना ==
अमरकोश श्लोकरूपेश्लोकरूप में रचित है। इसमें तीन काण्ड (अध्याय) हैं। स्वर्गादिकाण्डं, भूवर्गादिकाण्डं और सामान्यादिकाण्डम्। प्रत्येक काण्दकाण्ड में अनेक वर्ग हैं। विषयानुगुणं शब्दाः अत्र वर्गीकृताः सन्ति। शब्दों के साथ-साथ इसमें लिङ्गनिर्देश भी किया हुआ है।
 
===प्रथमकाण्ड/स्वर्गादिकाण्डम्===
स्वर्गादिकाण्ड में ग्यारह वर्गावर्ग हैं :
: १ स्वर्गवर्गः २ व्योमवर्गः ३ दिग्वर्गः ४ कालवर्गः ५ धीवर्गः ६ वाग्वर्गः
: ७ शब्दादिवर्गः ८ नाट्यवर्गः ९ पातालभोगिवर्गः १० नरकवर्गः ११ वारिवर्गः
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अमरकोष पर आज तक ४० से भी अधिक टीकाओं का प्रणयन किया जा चुका है । उनमें से कुछ प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं –
 
*१. '''अमरकोशोद्घाटन''' -: इसके रचनाकार [[क्षीरस्वामी]] हैं । यह क्षीरस्वामी का प्रमेयबहुल ग्रन्थ है । यह अमरकोष की सबसे प्राचीन टीका है । क्षीरस्वामी के समय के विषय में स्पष्टरूप से नहीं कहा जा सकता । परन्तु विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनका समय १०८० ई० से ११३० ई० के मध्य निर्धारित किया जा सकता है ।
 
*२. '''टीका सर्वस्व''' -: इसके रचनाकार सर्वानन्द हैं । ये बंगाल के निवासी थे । इनके विषय में स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुसार इनका समय ११५९ ई० है ।
 
*३. '''कामधेनु''' -: इसके रचनाकार सुभूतिचन्द्र हैं । इस टीका का अनुवाद [[तिब्बती भाषा]] में भी उपलब्ध है । इनका समय ११९१ ई० के आसपास है ।
 
*४. '''रामाश्रमी '''-: इस टीका के रचनाकार [[भट्टोजि दीक्षित]] के पुत्र [[भानुजि दीक्षित]] हैं । इस टीका का वास्तविक नाम ’व्याख्या सुधा’ है । संन्यास लेने के बाद भानुजि ने अपना नाम रामाश्रम रख लिया । उनके नाम के आधार पर यह टीका “रामाश्रमी टीका” के नाम से प्रसिद्ध हुई । आज यह प्रायः इसी नाम से जानी जाती है ।
 
रामाश्रमी टीका में, अमरकोश में परिगणित शब्दों की व्युत्पत्ति और निरुक्ति दी गयी है । अभी तक इस टीका का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध नहीं है । यह अमरकोष की एकमात्र ऐसी टीका है, जिसमें शब्दों की व्याकरणिक व्युत्पत्तियों के साथ–साथ निरुक्ति भी दी गयी है । [[यास्क]] कृत निरुक्त में कहा गया है –
 
“सर्वाणि: '''सर्वाणि नामानि आख्यातजानि ।“।'''
 
इसी सिद्धान्त का पालन करते हुए भानुजि दीक्षित ने अमरकोष में परिगणित शब्दों का निर्वचन किया है । वे भी सभी शब्दों को धातुज मानते हुए उनका निर्वचन करते हैं ।
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::: यस्य ज्ञानदयासिन्धोरगाधस्यानघा गुणाः।
::: सेव्यतामक्षयो धीरास्स श्रिय्यै चामृताय च।।
 
::: समाहृत्यान्यतन्त्राणि संक्षिप्त्यैः प्रतिसंस्कृतैः।
::: सम्पूर्णमुच्यते वर्गैर्नामलिङ्गानुशासनम्।वर्गैर्नामलिङ्गानुशासनम्।।
 
::: प्रायशो रूपभेदेन साहचर्याच्च कुत्रचित्।
::: स्त्रीनपुंसकं ज्ञेयं तद्विशेषविधेः क्वचित्।।
 
::: भेदाख्यानाय न द्वन्द्वो नैकशेषो न सङ्करः।
::: कृतोत्र भिन्नलिङ्गानामनुक्तानां क्रमादृते।।
 
::: त्रिलिङ्ग्यां त्रिष्विति पदं मिथुने तु द्वयोरिति।
::: निषिद्धलिङ्गं शेषार्थं त्वन्ताथादि न पूर्वभाक्।।
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== वाह्य सूत्र ==
* [http://sanskrit.jnu.ac.in/amara/index.jsp ऑनलाइन बहुभाषी '''अमरकोश''']
* [http://sanskrit.uohyd.ernet.in/scl/amarakosha/frame.html आनलाइन अमरकोश] - इसमें शब्द खोजने की विशेष सुविधा है।
* [http://sanskritdocuments.org/all_sa/amarfin1_sa.html अमरकोष, खण्ड-१]
* [http://sanskritdocuments.org/all_sa/amarfin2_sa.html अमरकोष, खण्ड-२]