"घना पक्षी अभयारण्य": अवतरणों में अंतर

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पौराणिक [[ब्रज]] क्षेत्र के एक भाग [[भरतपुर]] में केवलादेव ([[महादेव]]) मंदिर की अवस्थिति के कारण केवलादेव या घना कहा जाने वाला यह असाधारण रूप से विलक्षण राष्ट्रीय उद्यान वर्ष १९८५ से [[यूनेस्को]] की [[विश्व विरासत]] सूची में शामिल है। इस उद्यान का क्षेत्रफल २.८७३ हेक्टेयर है।
 
सर्दी की ऋतु में सेंकडों वर्षों से करीब ३६५ प्रजातियों के प्रवासी पक्षी अफगानिस्तान, तुर्की, चीन और सुदूर साइबेरिया तक से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर के घना पहुँचते आये हैं, इसका उल्लेख [[मुग़ल]] सम्राट [[बाबर]](February 23 [अन्य स्रोत फरवरी, 14] 1483 — जनवरी 5 [अन्य स्रोत दिसंबर 26, 1530] 1531)] के ग्रन्थ [[बाबरनामा]] में भी आता है. दुर्भाग्य से अनेक कारणों से अब इस राष्ट्रीय पार्क में पिछले कुछ सालों में साइबेरियन क्रेन की यात्राएं और प्रवास दुर्लभ हो चले हैं.
 
[[चित्र:गोल्डन बैक्ड वूड्पेकर.jpg|right|thumb|250px|गोल्डनबैक्ड वूड्पेकर : छाया : हे.शे. ]]
 
महान पक्षीविज्ञानी [[सालिम अली]] के अनुसार पक्षियों का यह अंतर्राष्ट्रीय प्रवास, एक अनसुलझी गुत्थी,'एक रहस्य' है.
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== घना की वनस्पतियां ==
सवाना घास के अलावा यहां Cynodon dactylon तथा DicanthiumDichanthium annulatum किस्म की घास की पैदावार और कई तरह की झाडियाँ कुदरती हैं, जो पक्षियों के लिए उपयुक्त आवास हैं । घना में कदम्ब (Neolamarckia cadamba)और देसी बबूल के अनगिनत पेड हैं, जो पक्षियों के घोंसले बनाने के लिए आदर्श हैं। बरसातों में घना बाढ के पानी से भर जाता है और तुरंत बाद सैंकडों तरह की वनस्पतियां पूरे इलाके में सर उठा कर खडी हो जाती हैं।
 
==आधार==
 
1. 'Collins Hand guideGuide to the Bird of Indian SubcontinentSub-Continent': by Martin W. Woodcock, London, 1980
 
2.'Wanderings of a Naturalist in India' : by A.L. Adams, 1867