"सारनाथ": अवतरणों में अंतर

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'''सारनाथ''' [[काशी]] अथवा [[वाराणसी]] के सात मील (10 किलोमीटर) पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है| ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे "धर्म चक्र प्रवर्तन" का नाम दिया जाता है और जो बौद्ध मत के प्रचार-प्रसार का आरंभ था| यही कारण है कि यह स्थान बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है (अन्य तीन हैं: लुम्बिनी, बोधिगया और कुशीनगर)। इसके साथ ही सारनाथ को जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म में भी महत्व प्राप्त है| जैन ग्रन्थों में इसे सिंहपुर कहा गया है और माना जाता है कि जैन धर्म के तेईसवेंग्यारहवें तीर्थंकर पार्श्वनाथश्रेयांसनाथ का जन्म यहाँ से थोड़ी दूर पर हुआ था| यहां पर सारंगनाथ महादेव का मन्दिर भी है जहां सावन के महीने में हिन्दुओं का मेला लगता है| [[सारनाथ]] में [[अशोक स्तंभ|अशोक का चतुर्मुख सिंहस्तम्भ]], भगवान बुद्ध का मन्दिर, धामेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीय संग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी, और नवीन विहार इत्यादि दर्शनीय हैं| मुहम्मद गौरी ने इसे नष्ट कर दिया था| सन १९०५ में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई का काम प्रारम्भ किया| उसी समय बौद्ध धर्म के अनुयायों और इतिहास के विद्वानों का ध्यान इधर गया| वर्तमान में सारनाथ लगातार वृद्धि की ओर अग्रसर है|
 
[[सारनाथ]] में [[अशोक स्तंभ|अशोक का चतुर्मुख सिंहस्तम्भ]], भगवान बुद्ध का मन्दिर, धामेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीय संग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी, और नवीन विहार इत्यादि दर्शनीय हैं| भारत का राष्ट्रीय चिह्न यहीं के अशोक स्तंभ के मुकुट की द्विविमीय अनुकृति है। मुहम्मद गौरी ने सारनाथ के पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया था| सन १९०५ में पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई का काम प्रारम्भ किया| उसी समय बौद्ध धर्म के अनुयायों और इतिहास के विद्वानों का ध्यान इधर गया| वर्तमान में सारनाथ एक तीर्थ स्थल और पर्यटन स्थल के रूप में लगातार वृद्धि की ओर अग्रसर है|
== परिचय ==
 
== परिचय ==
पहले यहाँ घना वन था और मृग-विहार किया करते थे। उस समय इसका नाम 'ऋषिपत्तन' और 'मृगदाय' था। ज्ञान प्राप्त करने के बाद गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं पर दिया था। सम्राट [[अशोक]] के समय में यहाँ बहुत से निर्माण-कार्य हुए। सिंहों की मूर्ति वाला भारत का राजचिह्न सारनाथ के अशोक के स्तंभ के शीर्ष से ही लिया गया है। यहाँ का 'धमेक स्तूप' सारनाथ की प्राचीनता का आज भी बोध कराता है। विदेशी आक्रमणों और परस्पर की धार्मिक खींचातानी के कारण आगे चलकर सारनाथ का महत्व कम हो गया था। मृगदाय में सारंगनाथ महादेव की मूर्ति की स्थापना हुई और स्थान का नाम सारनाथ पड़ गया।