"नाड़ी": अवतरणों में अंतर

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[[चरक संहिता]] की परम्परा के प्रवर्त्तक [[महर्षि भारद्वाज]] ने तो स्पष्ट कहा हैः-
 
:दर्शनस्पर्शनप्रश्नैः परीक्षेताथ रोगिणम्।<br />
:रोगांश्च साध्यान्निश्चत्य ततो भैषज्यमाचरेत्।।<br />
:दर्शनान्नेत्रजिह्वादेः स्पर्शनान्नाड़िकादितः<br />
:प्रश्नाहू1 तादिवचनैः रोगाणां कारणादिभिः।। '''(नाड़ीज्ञान तरंगिणी)'''
 
[[चरक संहिता]] के कर्ता महर्षि अग्निवेश के सहाध्यायी महर्षि भेड़ ने भी कहा हैः-
 
:रोगाक्रान्तशरीस्य स्थानान्यष्टौ परीक्षयेत्। <br />
:नाड़ीं जिह्वां मलं मूत्रं त्वचं दन्तनखस्वरात्।। '''(भेड़ संहिता)'''
 
यहाँ स्वर-परीक्षा का तात्पर्य सभी प्रकार के यथा-नासा वाणी, फुस्फुस, हृदय, अन्त्र आदि में स्वतः उत्पन्न की गयी ध्वनियों से है। स्वर नासिका से निकली वायु को भी कहते हैं।
 
 
==प्रमुख नाड़ियाँ और योग शास्त्र==
कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं <ref> [[गोरक्ष शतक]] और [[हठयोग प्रदीपिका]] नाड़ियों का संख्या ७२००० बताते हैं जबकि शिव संहिता कहती है कि नाभि से साढ़े तीन लाख नाड़ियों का उद्गम होता है </ref>। इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - [[ईड़ा]], [[पिंगला]] और [[सुषुम्ना]] । ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं । इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है । अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं ।
 
कई योग ग्रंथ १० नाड़ियों को प्रमुख मानते हैं <ref> गोरक्ष शतक और हठयोग प्रदीपिका नाड़ियों का संख्या ७२००० बताते हैं जबकि शिव संहिता कहती है कि नाभि से साढ़े तीन लाख नाड़ियों का उद्गम होता है </ref>। इनमें भी तीन का उल्लेख बार-बार मिलता है - [[ईड़ा]], [[पिंगला]] और [[सुषुम्ना]] । ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं । इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है । अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं ।
 
ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा का वाह करती है । शिव स्वरोदय ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है । इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है । इसका उद्गम [[मूलाधार चक्र]] माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है ।
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पिंगला धनात्मक ऊर्जा का संचार करती है । इसको सूर्यनाड़ी भी कहा जाता है । यह शरीर में जोश, श्रमशक्ति का वहन करती है और चेतना को बहिर्मुखी बनाती है । पिंगला का उद्गम मूलाधार के दाहिने भाग से होता है जबकि पिंगला का बाएँ भाग से ।
 
==इन्हें भी देखें==
{{भारतीय ज्योतिष}}
*[[नाड़ी परीक्षा]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/नाड़ी" से प्राप्त