"भविष्य पुराण": अवतरणों में अंतर
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;ब्राह्म पर्व
:भविष्य की घटनाओं से संबंधित इस पन्द्रह सहस्र श्लोकों के महापुराण में धर्म, आचार, नागपंचमी व्रत, सूर्यपूजा, स्त्री प्रकरण आदि हैं। इसके इस पर्व के आरम्भ में महर्षि सुमंतु एवं राजा शतानीक का संवाद है। इस पर्व में मुख्यत: व्रत-उपवास पूजा विधि, सूर्योपासना का माहात्म्य और उनसे जुड़ी कथाओं का विवरण प्राप्त होता है।
;मध्यम पर्व
:मध्यमपर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरूपण है। इसमें वर्णित व्रत और दान से सम्बद्ध विषय भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इतने विस्तार से व्रतों का वर्णन न किसी पुराण, धर्मशास्त्रमें मिलता है और न किसी स्वतन्त्र व्रत-संग्रह के ग्रन्थ में। हेमाद्रि, व्रतकल्पद्रुम, व्रतरत्नाकर, व्रतराज आदि परवर्ती व्रत-साहित्य में मुख्यरूप से भविष्यपुराण का ही आश्रय लिया गया है। इस पर्व में मुख्य रुप से श्राद्धकर्म, पितृकर्म, विवाह-संस्कार, यज्ञ, व्रत, स्नान, प्रायश्चित्त, अन्नप्राशन, मन्त्रोपासना, राज कर देना, यज्ञ के दिनों की गणना के बारे में विवरण दिया गया है।
;प्रतिसर्ग पर्व
:इसके प्रतिसर्गपर्व के तृतीय तथा चतुर्थ खण्ड में इतिहासकी महत्त्वपूर्ण सामग्री विद्यमान है। इतिहास लेखकोंने प्रायः इसीका आधार लिया है। इसमें मध्यकालीन हर्षवर्धन आदि हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, मुहम्मद तुगलक, तैमूरलंग, बाबर तथा अकबर आदि का प्रामाणिक इतिहास निरूपित है। ईसा मसीह के जन्म एवं उनकी भारत यात्रा, हजरत मुहम्म का आविर्भाव, द्वापर युग के चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन, कलि युग में होने राजाओं ,बौद्ध राजाओं तथा चौहान एवं परमार वंश के राजाओं तक का वर्णन इसमें प्राप्त होता है।
;उत्तर पर्व
:इस पर्व में भगवान विष्णु की माया से नारद जी के मोहित होने का वर्णन है इसके बाद स्त्रियों को सौभाग्य प्रदा करने वाले अन्य कई व्रतों का वर्णन भी विस्तारपूर्वक किया गया है।
{{अनुवाद}}==संदर्भ==
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