"स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती": अवतरणों में अंतर

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{{Ping|संजीव कुमार}}[[चित्र:Bhaktisiddhanta2.jpg|right|thumb|200px|स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती]]
'''स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती''' (6 फरवरी 1874 – 1 जनवरी 1937) गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख गुरू एवं आध्यात्मिक प्रचारक थे।{{उद्धरण आवश्यक|date=जून 2014}} उन्हें 'भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर' भी कहते हैं। उनका मूल नाम ''विमल प्रसाद दत्त'' था। {{उद्धरण आवश्यक|date=जून 2014}}
[[श्रीकृष्ण]] की भक्ति-उपासना के अनन्य प्रचारकों में स्वामी भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी का नाम अग्रणी है।{{उद्धरण आवश्यक|date=जून 2014}} उन्हीं से प्रेरणा और आशीर्वाद प्राप्त कर [[भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद|स्वामी भक्तिवेदान्त प्रभुपाद]] ने पूरे संसार में [[श्रीकृष्ण भावनामृत संघ]] की शाखाएं स्थापित कर लाखों व्यक्तियों को [[हिन्दू]]धर्म तथा भगवान श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त बनाने में सफलता प्राप्त की थी। {{उद्धरण आवश्यक|date=जून 2014}}
 
==परिचय==
स्वामी भक्तिसिद्धान्त का जन्म 20 जुलाई, 1873 को [[चैतन्य महाप्रभु]] की शिष्य परम्परा के महान वैष्णव आचार्य भक्ति विनोद ठाकुर के पुत्र के रूप में [[जगन्नाथपुरी]] में हुआ था।{{उद्धरण आवश्यक|date=जून 2014}} गौड़ीय सम्प्रदाय के आचार्य पिताश्री से उन्हें बचपन में ही श्रीकृष्ण भक्ति का प्रसाद मिला था। श्रीमद्भगवद्गीता तथा चैतन्य महाप्रभु के पावन जीवन चरित्र ने उन्हें श्रीकृष्ण भक्ति के प्रचार-प्रसार की प्रेरणा दी।{{उद्धरण आवश्यक|date=जून 2014}}
 
भक्ति सिद्धान्त युवावस्था से ही [[अंग्रेजी]] तथा [[बंगला]] के प्रभावी वक्ता थे। युवा पीढ़ी विशेषकर उनके व्याख्यान सुनकर मंत्र-मुग्ध हो जाती थी। वे [[दक्षिणेश्वर मन्दिर]] जाकर प्राय: स्वामी [[रामकृष्ण परमहंस]] तथा [[स्वामी विवेकानन्द]] के सान्निध्य का लाभ उठाते थे।{{उद्धरण आवश्यक|date=जून 2014}}
 
[[श्रेणी:वैष्ण्व गुरु]]