"मिश्रातु": अवतरणों में अंतर
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== परिचय ==
[[चित्र:A brass light.JPG|right|250px|thumb|पीतल का दीपक]]
मिश्रधातु (Alloy) व्यापक रूप में एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग किसी भी धात्विक वस्तु के लिये होता है, बशर्ते वह [[रासायनिक तत्व]] न हो। मिश्रधातु बनाने की कला अति प्राचीन है। सत्य तो यह है कि [[कांसा|काँसे]] का महत्व एक युग में इतना अधिक था कि मानव सभ्यता के विकास के उस युग का नाम ही
धातुएँ जब किसी सामान्य विलयन, जैसे अम्ल, में घुलती है तब वे अपने धात्विक गुणों को छोड़ देती हैं और साधारणतया लवण बनाती हैं, किंतु पिघलाने पर जब वे परस्पर घुलती हैं तब वे अपने धात्विक गुणों के सहित रहती हैं। धातुओं के ऐसे ठोस विलयन को मिश्रधातु कहते हैं। अनेक मिश्रधातुओं में अधातुएँ भी अल्प मात्रा में होती हैं, किंतु संपूर्ण का गुण धात्विक रहता है। अत: 1939 ई0 में अमरीका वस्तु परीक्षक परिषद् ने मिश्रधातु की निम्नलिखित परिभाषा की- ''मिश्रधातु वह वस्तु है जिसमें धातु के सब गुण होते हैं। इसमें दो या दो से अधिक धातुएँ, या धातु और अधातु होती है, जो पिघली हुई दशा में एक दूसरे से पूर्ण रूप से घुली रहती हैं और ठोस होने पर स्पष्ट परतों में अलग नहीं होती। प्रारंभ में मिश्रधातु का अधिकतम उपयोग सिक्कों और आभूषणों के बनाने में होता था। ताँबे के सिक्कों में ताँबा, टिन और जस्ता क्रमश: 95/4 तथा 1 प्रतिशत रहते हैं। सन् 1920 तक इंग्लैंड में चाँदी के सिक्के, 'स्टीलिंग' चाँदी के बनाए जाते थे, जिसमें चाँदी और ताँबा क्रमश: 92.5 और 7.5 प्रतिशत होते थे। अमरीका में चाँदी के सभी सिक्कों में चाँदी और ताँबा क्रमश: 90 तथा 10 प्रतिशत होते हैं। इंग्लैंड के सोने के सिक्कें में सोना और ताँबा क्रमश: 91.67 और 8.33 प्रतिशत होते हैं और अमरीका के सोने के सिक्कों में सोना 90 प्रतिशत तथा शेष अन्य धातुएँ, विशेषकर ताँबा रहता है। प्लैटिनयम, सोना तथा चाँदी के आभूषणों के रंगो में सुंदरता लाने के लिये उनको कठोर, मजबूत तथा टिकाऊ बनाने के लिये, या उन्हें सस्ते मूल्यों में विक्रय के लिये दूसरी धातुओं के साथ मिलाकर काम में लाते हैं।
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