"मिश्रातु": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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मिश्रधातु (Alloy) व्यापक रूप में एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग किसी भी धात्विक वस्तु के लिये होता है, बशर्ते वह [[रासायनिक तत्व]] न हो। मिश्रधातु बनाने की कला अति प्राचीन है। सत्य तो यह है कि [[कांसा|काँसे]] का महत्व एक युग में इतना अधिक था कि मानव सभ्यता के विकास के उस युग का नाम ही '[[कांस्य युग]]' पड़ गया है। यद्यपि शुद्ध धातुओं के कई उपयोगी गुण हैं, जैसे ऊष्मा और विद्युत् की सुचालकता, तथापि यांत्रिक और निर्माण संबंधी कार्यों में साधारणतया शुद्ध धातुएँ उपयोग में नहीं लाई जातीं, क्योंकि इनमें आवश्यक मजबूती नहीं होती। '''धातु को अधिक मजबूत बनाने की सबसे महत्वपूर्ण विधि धातुमिश्रण (alloying) है'''। इस दिशा में 19वीं शताब्दी में बहुत अधिक प्रयास हुआ, उसी का फल है कि अनेक उपयोगी कार्यों के लिये आज पाँच हजार से भी अधिक मिश्रधातुएँ उपलब्ध हैं और नई मिश्रधातुएँ तैयार करने के लिये नित्य नए नए प्रयोग किए जा रहे हैं। आज किसी विशेष उपयोग के लिये इच्छित गुणोंवाली मिश्रधातुएँ बनाई जाती है।
धातुएँ जब किसी सामान्य विलयन, जैसे अम्ल, में घुलती है तब वे अपने धात्विक गुणों को छोड़ देती हैं और साधारणतया लवण बनाती हैं, किंतु पिघलाने पर जब वे परस्पर घुलती हैं तब वे अपने धात्विक गुणों के सहित रहती हैं। धातुओं के ऐसे ठोस विलयन को मिश्रधातु कहते हैं। अनेक मिश्रधातुओं में अधातुएँ भी अल्प मात्रा में होती हैं, किंतु संपूर्ण का गुण धात्विक रहता है। अत: 1939 ई0 में अमरीका वस्तु परीक्षक परिषद् ने मिश्रधातु की निम्नलिखित परिभाषा की-
:''मिश्रधातु वह वस्तु है जिसमें धातु के सब गुण होते हैं। इसमें दो या दो से अधिक धातुएँ, या धातु और अधातु होती है, जो पिघली हुई दशा में एक दूसरे से पूर्ण रूप से घुली रहती हैं और ठोस होने पर स्पष्ट परतों में अलग नहीं होती। प्रारंभ में मिश्रधातु का अधिकतम उपयोग [[सिक्का|सिक्कों]] और आभूषणों के बनाने में होता था। ताँबे के सिक्कों में ताँबा, टिन और जस्ता क्रमश: 95/4 तथा 1 प्रतिशत रहते हैं। सन् 1920 तक इंग्लैंड में चाँदी के सिक्के, ' यह निश्चय करना कि मिश्रधातुएँ साधारण मिश्रण हैं या रासायनिक यौगिक, एक जटिल समस्या है। कुछ अर्थों में ये रासायनिक यौगिक हैं, क्योंकि जब सोडियम सरस बनाया जाता है, तब सोडियम के हर एक टुकड़े को पार में डालने से प्रकाश की तीव्र ज्वाला निकलती है और पारा गरम हो जाता है, यह यौगिक बनने का लक्षण है। इसी प्रकार पिघलते हुए सोने में जब ऐल्युमिनियम धातु का एक टुकड़ा डालते हैं, तब इतनी अधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है कि संपूर्ण पिघली हुई धातु उज्जवल प्रकाशमय हो जाती है। अनेक मिश्र धातुओं का रंग अपने अवयव धातुओं के रंगों से बिल्कुल भिन्न होता है। उदाहरणार्थ, चाँदी और जस्ता दोना श्वेत रंग के होते हैं, किंतु इनसे जो मिश्रधातु बनती है उसका रंग अति सुंदर गुलाबी होता है। सोना पीला और ऐल्युमीनियम श्वेत होता है, किंतु इनकी मिश्रधातु का रंग अति चमकीला नीललोहित होता है। यह गुण भी यौगिकों का है।
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