"कादम्बरी": अवतरणों में अंतर
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'''कादम्बरी''' [[संस्कृत]] साहित्य का महान [[उपन्यास]] है। इसके रचनाकार [[वाणभट्ट]] हैं। यह विश्व का प्रथम उपन्यास कहलाने का [[अधिकारी]] है। इसकी कथा सम्भवतः [[गुणाढ्य]] द्वारा रचित [[बड्डकहा]] (वृहद्कथा) के राजा सुमानस की कथा से ली गयी है। यह ग्रन्थ बाणभट्ट के जीवनकाल में पूरा नहीं हो सका। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र भूषणभट्ट (या पुलिन्दभट्ट) ने इसे पूरा किया और पिता द्वारा लिखित भाग का नाम 'पूर्वभाग' एवं स्वयं द्वारा लिखित भाग का नाम 'उत्तरभाग' रखा।
जहाँ [[हर्षचरित]] आख्यायिका के लिए आदर्शरूप है वहाँ गद्यकाव्य कादम्बरी [[कथा]] के रूप में। बाण के ही शब्दों में इस कथा ने पूर्ववर्ती दो कथाओं का अतिक्रमण किया है। ''
ऐसा प्रतीत होता है कि बाण इस कृति को सम्पूर्ण किए बिना ही दिवंगत हुए जैसा कि उनके पुत्र ने कहा है:
:याते दिवं पितरि तद्वचसैव
:विच्छेदमाप भुवि यस्तु
:दुःखं सतां यदसमाप्तिकृतं विलोक्य
:प्रारण्य एव स मया न कवित्वदर्पात्।।
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==महाकवि बाणभट्ट की शैली==
एक विद्वान आलोचक के अनुसार विशेषणबहुल वाक्य रचना में, श्लेषमय अर्थों में तथा शब्दों के अप्रयुक्त अर्थों के
प्रयोग में ही बाण का वैशिष्ट्य है। उनके गद्य में लालित्य है और लम्बे समासों में बल प्रदान करने की शक्ति है। वे श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, सहोक्ति, परिसंख्या और विशेषतः
बाण की शब्दावली विस्तृत है और प्रायः वह एक शब्द के सभी पर्यायों का प्रयोग करते हैं। उन्होंने ‘ध्वनि’ के लिए
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बाणभट्ट का मानव प्रकृति का ज्ञान आश्चर्यजनक है। उसका कोई भी तत्त्व अनुद्घाटित नहीं रहा। यह ठीक ही कहा
गया है "'बाणोच्छिष्टं जगत सर्वम्।'" बाण ने किसी भी कथनीय बात को छोड़ा नहीं जिसके कारण कोई भी पश्चाद्वती लेखक बाण को अतिक्रांत न कर सका। कवि की सर्वतोमुखी प्रतिभा, व्यापक ज्ञान, अद्भुत वर्णन शैली और प्रत्येक वर्ण्य-विषय के सूक्ष्मातिसूक्ष्म वर्णन के
बाण ने जितनी सुन्दरता, सहृदयता और सूक्ष्मदृष्टि से बाह्य प्रकृति का वर्णन किया है, उतनी ही गहराई से अन्तः प्रकृति और मनोभावों का विश्लेषण किया है। उनके वर्णन इतने व्यापक और सटीक होते हैं, कि पाठक को यह अनुभव होता है कि उन परिस्थितियों में वह भी ऐसा ही सोचता या करता। प्रातः काल वर्णन, सन्ध्यावर्णन, शूद्रकवर्णन, शुकवर्णन, चाण्डालकन्या वर्णन आदि में बाण ने वर्णन ही नहीं किया है, अपितु प्रत्येक वस्तु का सजीव चित्र उपस्थित कर दिया है। चन्द्रापीड को दिये गये [[शुकनासोपदेश]] में तो कवि की प्रतिभा का चरमोत्कर्ष परिलक्षित होता है। कवि की लेखनी भावोद्रेक में बहती हुई सी प्रतीत होती है। शुकनासोपदेश में ऐसा प्रतीत होता है मानो सरस्वती साक्षात मूर्तिमती होकर बोल रही हैं।
बाण के वर्णनों में भाव और भाषा का सामंजस्य, भावानुकूल भाषा का प्रयोग, अलंकारों का सुसंयत प्रयोग, भाषा में
आरोह और अवरोह तथा लम्बी समासयुक्त पदावली के पश्चात् लघु पदावली आदि गुण विशेष रूप से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक वर्णन में पहले विषय का सांगोपांग वर्णन मिलता है, बहुत समस्तपद मिलते हैं, तत्पश्चात् श्लेषमूलक उपमायें और उत्प्रेक्षाएँ, तदनन्तर
बाण का भाव एवं कल्पना पर अद्वितीय अधिकार था। उसके वाक्यों की लम्बाई
:'''वाणी वाणी बभूव।'''
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