"अमरकांत": अवतरणों में अंतर
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अमरकान्त का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[बलिया]] जिले के [[नगारा]] गाँव में हुआ था। उन्होंने [[प्रयाग|इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से बी.ए. किया। इसके बाद उन्होंने साहित्यिक सृजन का मार्ग चुना। बलिया में पढ़ते समय उनका सम्पर्क स्वतन्त्रता आंदोलन के सेनानियों से हुआ। सन् १९४२ में वे स्वतन्त्रता-आंदोलन से जुड़ गए। शुरुआती दिनों में अमरकान्त तरतम में [[ग़ज़ल|ग़ज़लें]] और [[लोकगीत]] भी गाते थे। उनके साहित्य जीवन का आरंभ एक [[पत्रकार]] के रूप में हुआ। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का [[सम्पादन]] किया। वे बहुत अच्छी कहानियाँ लिखने के बावजूद एक अर्से तक हाशिये पर पड़े रहे। उस समय तक [[नयी कहानी|कहानी]]-चर्चा के केन्द में [[मोहन राकेश]], [[कमलेश्वर]], [[राजेन्द्र यादव]] की त्रयी थी। कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति सन् १९५५ में 'डिप्टी कलेक्टरी' कहानी से हुई।
अमरकांत के स्वभाव के संबंध में [[रवीन्द्र कालिया]] लिखते हैं- "वे अत्यन्त संकोची व्यक्ति हैं। अपना हक माँगने में भी संकोच कर जाते हैं। उनकी प्रारम्भिक पुस्तकें उनके दोस्तों ने ही प्रकाशित की थीं।...एक बार बेकारी के दिनों में उन्हें पैसे की सख्त जरूरत थी,
सन् १९५४ में अमरकान्त को हृदय रोग हो गया था। तब से वह एक जबरदस्त अनुशासन में जीने लगे। अपनी लड़खड़ाती हुई जिन्दगी में अनियमितता नहीं आने दी। भरसक कोशिश की, तनाव से मुक्त रहें। [[जवाहरलाल नेहरू]] उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं। वे मानते थे कि नेहरू जी कई अर्थों में [[महात्मा गांधी|गांधीजी]] के पूरक थे और पंडित नेहरू के प्रभाव के कारण ही [[कांग्रेस]] संगठन प्राचीनता और पुनरुत्थान आदि कई प्रवृतियों से बच सका। 17 फ़रवरी, 2014 को उनका [[इलाहाबाद]] में निधन हो गया।<ref>{{cite news|url=http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2014/02/140217_amarkant_obit_rns.shtml |title=वरिष्ठ कथाकार अमरकांत का देहांत |publisher=बीबीसी हिन्दी |date=17 फ़रवरी 2014 |accessdate=}}</ref>
== रचनाएँ ==
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