"वुडरो विल्सन": अवतरणों में अंतर

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विल्सन [[राजनीति शास्त्र]] का प्राध्यापक था। अतएव वह चिंतक था। उसने अमेरिकी प्रशासन पर विशद् ग्रन्थ लिखे थे। उसका विचार था कि कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका में शक्ति के बंटवारे से शासन में सामंजस्य नहीं हो पाया। अतएव उसकी इच्छा थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति को इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री की भांति शक्तिशाली होना चाहिये। जब वह राष्ट्रपति बना तो उसने निःसन्देह अपने विचारों को कार्यान्वित कर राष्ट्रपति की शासन का शक्तिशाली केन्द्र-बिन्दु बनाया। उसमें साहसिक निर्भीकता, निरुत्तर कर देने वाली निष्कपटता थी। उसका विश्वास था कि सात्विक कार्यों की सदैव विजय होगी और सत्य के प्रतिनिधियों को असत्य, अविवेक एवं आडम्बर से समझौता नहीं करना चाहिये। अपने शासनकाल के आरम्भिक वर्षों में ही उसने सम्पूर्ण जनता का ध्यान आकर्षित कर लिया। उसने सम्पूर्ण राष्ट्रीय जीवन में समर्पण, त्याग एवं नैतिकता की भावना को प्रेरित किया। लेकिन स्वयं की सात्विकता एवं उद्देश्यों के प्रति उसमें इतना गर्व कर गया कि वह सोचने लगा कि जो उसका विरोध करते थे वे ईश्वर का विरोध कर रहे थे। उसमें लिंकन की विनम्रता का अभाव था। अपने चुनाव अभियान में उसने पूर्व के अनुदारवादी विचारों को त्यागकर प्रगतिवाद का नारा दिया था। राष्ट्रपति बनने के बाद उसने अपने व्यक्तित्व में समझौतावादी जीवन ग्रहण नहीं किया, हालांकि राष्ट्रपति पद के नामांकन के लिए उसने उस ब्रायन की भी बहुत प्रशंसा की थी जिसके सम्बन्ध मेंं उसकी धारणा यह थी कि ‘उसे कचरे में फैंक देना चाहिए।’ वस्तुतः उसके व्यकितत्व में अनेक गुणों का सम्मिश्रण था। वह खुशामद पसन्दगी की एवं विनम्र घूसखोरी की कला से परिचित था, लेकिन साथ ही वह गहरी नैतिकता, दया एवं संवेदनशील वृत्ति का भी था। वह अच्छे-बुरे की पहचान रखता था। उसमें ‘पूर्व विमान’ (Old Testament), [[प्लेटो]] के ‘दार्शनिक राजा’ एवं [[मैकियावली]] के ‘राजकुमार’ (प्रिंस) के तत्त्वों का समावेश था। लिंकन की भांति वह समय के साथ अपने उत्तरदायित्व के योग्य सिद्ध हुआ।
 
==प्रथम व्श्वयुद्धविश्वयुद्ध एवं लीग आफ नेशन्स==
विल्सन शान्ति के राजनय में विश्वास करता था, मतभेदों को वार्ता के राजनय द्वारा सुलझाने का पक्षधर था। वह [[आदर्शवाद|आदर्शवादी]] था। जब दूसरी बार वह राष्ट्रपति चुना गया तब उसे इस बात की गम्भीर चिन्ता थी कि विश्व की तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए अमेरिका को तटस्थता के पायदान पर नहीं रखा जा सकता था। विल्सन शान्ति का समर्थक था। वह अच्छी तरह जानता था कि विश्व युद्ध में अमेरिकी प्रदेश से अमरीकियों की विचारधारा, दर्शन एवं साहित्य पर युद्धप्रियता का भारी प्रभाव पड़ेगा। विल्सन ने अमेरिकी प्रस्तावों को शान्ति के लिए प्रस्तुत किया जिन्हें यूरोपीय शक्तियों ने अस्वीकार कर दिया। अमेरिका ने तटस्थता की घोषणा की। 4 सितम्बर, 1914 को कांग्रेस के नाम अपने राजनयिक सन्देंश में विल्सन ने कहा कि-”यह स्थिति हमारे द्वारा निर्मित नहीं है लेकिन यह हमारे सामने है। यह हमें प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है मानो हम उन परिस्थितियों के भागीदार हैं जिन्होंने इसे जन्म दिया है। हम इसका भुगतान करेंगे यद्यपि हमने जानबूझकर इसे जन्म नहीं दिया है।“ अमेरिका महायुद्ध से अछूता नहीं रह सकता था फिर भी 1914 में कोई अमेरिकी नहीं जानता था कि उन्हें युद्ध में संलग्न होना पड़ेगा। जब जर्मनी की यू-बोटों (U-Boats) ने अनियन्त्रित युद्ध शुरु कर दिया तो जर्मनी के विरुद्ध अन्तिम शक्तिशाली तटस्थ देश अमेरिका भी युद्ध में प्रविष्ट हो गया। विल्सन ने 2 अप्रेल, 1917 को कांग्रेस को अपना प्रसिद्ध सन्देश भेजा, जिसमें उसने अपने देश को सलाह दी कि यह युद्ध में प्रवेश करे और विश्व को लोकतन्त्रीय शक्तियों की रक्षा करे। उक्त सन्देश में उसने कहा, ”जिन सिद्धान्तों को हम हृदय से चाहते हैं, उनकी रक्षार्थ हम अवश्य लड़ेगे। हम लोकतन्त्र की रक्षा करेंगे। हम उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करेंगे जो किसी न्यायपूर्ण सत्ता का आदर करते हैं और इस प्रकार अनुशासन में रहकर अपने शासन में कुछ अधिकार चाहते हैं। हम सभी छोटे देशों और राष्ट्रों के अधिकारों और स्वतन्त्रताओं की आवश्यक रक्षा करेंगे। हम अवश्य चाहेंगे कि सारे संसार में स्वतन्त्र लोगों को न्यायपूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त रहे जिससे सभी देशों में शान्ति और सुरक्षा बनी रहे और इस प्रकार सारा विश्व स्वतन्त्र रहे। आज अमेरिका के सौभाग्य से वह दिन आ गया है जबकि हमारे नागरिक अपना रक्त और अपनी शक्ति उन सिद्धान्तों की रक्षार्थ व्यय करेंगे जिनके आधार पर अमेरिका का जन्म हुआ था, जिनके आधार पर अमेरिका को सुख और समृद्धि प्राप्त हुई थी तथा वह अमूल्य शान्ति प्राप्त हुई जिसे वह अत्यन्त महत्व की दृष्टि से देखता आया है।“