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हिरण्याक्ष वध
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भगवान विष्णु ने कहा, "हे मुनिगणों! मै सर्वशक्तिमान होने के बाद भी ब्राह्मणों के वचन को असत्य नहीं करना चाहता क्योंकि इससे धर्म का उल्लंघन होता है। आपने जो शाप दिया है वह मेरी ही प्रेरणा से हुआ है। ये अवश्य ही इस दण्ड के भागी हैं। ये [[दिति]] के गर्भ में जाकर दैत्य योनि को प्राप्त करेंगे और मेरे द्वारा इनका संहार होगा। ये मुझसे शत्रुभाव रखते हुये भी मेरे ही ध्यान में लीन रहेंगे। मेरे द्वारा इनका संहार होने के बाद ये पुनः इस धाम में वापस आ जावेंगे।"<ref>[http://hindi.pardaphash.com/news/--714085/714085.html?device=android&w=980&h=1554 जय विजय]</ref>
 
--[[विशेष:योगदान/117.197.125.101|117.197.125.101]] ([[सदस्य वार्ता:117.197.125.101|वार्ता]]) 10:40, 6 जुलाई 2014 (UTC) हिरण्याक्ष वध ==
== हिरण्याक्ष वध ==
जय और विजय बैकुण्ठ से गिर कर दिति के गर्भ में आ गये। कुछ काल के पश्चात् दिति के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुये जिनका नाम प्रजापति कश्यप ने [[हिरण्यकशिपु|हिरण्यकश्यपु]] और [[हिरण्याक्ष]] रखा। इन दोनों यमल के उत्पन्न होने के समय तीनों लोकों में अनेक प्रकार के भयंकर उत्पात होने लगे। स्वर्ग पृथ्वी, आकाश सभी काँपने लगे और भयंकर आँधियाँ चलने लगीं। सूर्य और चन्द्र पर केतु और राहु बार बार बैठने लगे। उल्कापात होने लगे। बिजलियाँ गिरने लगीं। नदियों तथा जलशयों के जल सूख गये। गायों के स्तनों से रक्त बहने लगा। उल्लू, सियार आदि रोने लगे।
 
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[[File:Boar-carving_Udaigiri_Vidisha.jpg|left|thumb|300px|[[उदयगिरि]] की गुफा, [[विदिष]] [[गुप्त साम्राज्य]] की प्राचीन राजधानी से मिला शिलाचित्र, भगवान वाराह भू देवी को दाँतों पर रखे हुए। एक प्रचीन शिलाचित्र जिसे पत्थर को काटकर अद्वितीय नक्काशीदार मुर्तिकला से बनाया गया था।]]
 
हिरण्याक्ष के इन वचनों को सुन कर वाराह भगवान को बहुर क्रोध आया किन्तु पृथ्वी को वहाँ छोड़ कर युद्ध करना उन्होंने उचित नहीं समझा और उनके कटु वचनों को सहन करते हुये वे गजराज के समान शीघ्र ही जल के बाहर आ गये। उनका पीछा करते हुये हिरण्याक्ष भी बाहर आया और कहने लगा, "रे कायर! तुझे भागने में लज्जा नहीं आती? आकर मुझसे युद्ध कर।" पृथ्वी को जल पर उचित स्थान पर रखकर और अपना उचित आधार प्रदान कर भगवान वाराह दैत्य की ओर मुड़े और कहा, "अरे ग्राम सिंह (कुत्ते)! हम तो जंगली पशु हैं और तुम जैसे ग्राम सिंहों को ही ढूँढते रहते हैं। अब तेरी मृत्यु सिर पर नाच रही है।" उनके इन व्यंग वचनों को सुनकर हिरण्याक्ष उन पर झपट पड़ा। भगवान वाराह और हिरण्याक्ष मे मध्य भयंकर युद्ध हुआ और अन्त में हिरण्याक्ष का भगवान वाराह के हाथों वध हो गया।गया.भगवान वाराह के विजय प्राप्त करते ही ब्रह्मा जी सहित समस्त देवतागण आकाश से पुष्प वर्षा कर उनकी स्तुति करने लगे।
 
[[File:Varaha Khajuraho.jpg|thumb|left|300px|पशु रूप में वाराह, [[खजुराहो]]।]]
 
भगवान वाराह के विजय प्राप्त करते ही ब्रह्मा जी सहित समस्त देवतागण आकाश से पुष्प वर्षा कर उनकी स्तुति करने लगे।<ref>[http://astrobix.com/hindumarg/23-%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9_%E0%A4%85%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0__Varaha_Avatar__Varaha_Jayanti_2013__Varaha_Jayanti_Festival.html वाराहावतार]</ref>
 
== [[भागवत]] पुराण के अनुसार ==