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जयपुर के [[नगर नियोजक]] और प्रमुख-[वास्तुविद]] के रूप में [[विद्याधर]] का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं. वह कई अवसरों पर अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर चुके थे और [[सवाई जयसिंह]] को उनकी मेधा और योग्यता पर पूरा भरोसा था इसलिए सन 1727 में [[आमेर]] को छोड़ कर जब पास में ही एक नया [[नगर]] बनाने का विचार उत्पन्न हुआ तो भला [[विद्याधर]] को छोड़ कर इस कल्पना को क्रियान्वित करने वाला भला दूसरा और कौन होता? लगभग चार साल में विद्याधर के मार्गदर्शन में नए नगर के निर्माण का आधारभूत काम पूरा हुआ| जयसिंह ने अपने नाम पर इस का नाम पहले पहल 'सवाई जयनगर' रखा जो बाद में 'सवाई जैपुर' और अंततः आम बोलचाल में और भी संक्षिप्त हो कर 'जयपुर' के रूप में जाना गया|
[[File:Jaigarh Fort Wall.JPG|thumb|विद्याधर द्वारा आकल्पित बहुचर्चित किला '[[जयगढ़]]']]
[[१७३४]] ईस्वी में [[जयपुर]] में सात-खंड (मंजिल) के [[राजमहल]] ' (चन्द्रमहल)' का निर्माण जहाँ विद्याधर ने करवाया, वहीं इस से पहले सन [[१७२६]]-२७ (संवत १७८३) में आमेर में दुर्गम और प्रसिद्ध किले [[जयगढ़]] की तामीर भी इन्होने ही शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर करवाई[http://www.archinomy.com/case-studies/1906/jaipur-evolution-of-an-indian-city] [- जिसके तुरंत बाद इन्हें आमेर राज्य का राजस्व-मंत्री ( 'देश-दीवान' )का ओहदा मिला|
 
पुराना शहर चारों ओर से ऊंचे मज़बूत परकोटे से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे बनवाये गए। बहुत बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर सामान आकार के छह भागों में बँटा है और यह 111 फुट(34 मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। प्रासाद-भाग में हवामहल परिसर, टाउनहाल, तालकटोरा, गोविन्ददेव मंदिर, उद्यान एवं वेधशाला आदि हैं तो पुराने शहर के उत्तर-पश्चिमी ओर की पहाड़ी पर नाहरगढ़, शहर के मुकुट जैसा लगता एक किला|[http://www.archinomy.com/case-studies/1906/jaipur-evolution-of-an-indian-city]
 
नगर को [[वास्तु शास्त्र]] के अनुरूप अलग-अलग प्रखंडों (चौकड़ियों) में समकोणीय मार्गों के आधार पर बांटने, विशेषीकृत हाट-बाज़ार विकसित करने, इसकी सुन्दरता को बढ़ाने वाले अनेकानेक निर्माण करवाने वाले [[विद्याधर]] का नगर-नियोजन [ http://www.archinomy.com/case-studies/1906/jaipur-evolution-of-an-indian-city] आज देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों में मानक-उदाहरण के रूप में छात्रों को पढ़ाया जाता है| [[ली कार्बूजियर]] के [[चंडीगढ़]] की वास्तु-योजना [http://wwwchandigarh.archinomygov.comin/case-studiesknowchd_gen_plan.htm][http:/1906/jaipur-evolutionarchitectuul.com/architecture/city-of-an-indian-citychandigarh] [ https://maps.google.co.in/maps?es_sm=93&um=1&ie=UTF-8&fb=1&gl=in&q=architecture+of+chandigarh&hq=architecture+of&hnear=0x390fed0be66ec96b:0xa5ff67f9527319fe,Chandigarh&sa=X&ei=3xK6U6WxCdefugT_j4HIAw&ved=0CNABEMgT] बहुत कुछ जयपुर के नगर-नियोजन से ही अभिप्रेरित है. [[रूस]] के [[भारतविद]] विद्वान [[ए. ए.कोरोत्स्काया]] ने अपनी प्रसिद्ध किताब '''[[भारत]] के नगर''' में विद्याधर और जयपुर की विशिष्ट वास्तुरचना बारे में विस्तार से विचार व्यक्त किये हैं|
 
[[सवाई जयसिंह]] के समकालीन, [[संस्कृत]] और [[ब्रजभाषा]] के महा[[कवि]] [[श्रीकृष्णभट्ट कविकलानिधि]] ने अपने [[इतिहास]]-[[काव्य]][[ग्रंथ]] '''[[ईश्वरविलास महाकाव्य]]''' में विद्याधर की प्रशस्ति में कहा है "बंगालयप्रवर वैदिकागौड़विप्र: क्षिप्रप्रसादसुलभ: सुमुख:कलावान विद्याधरोजस्पति मंत्रिवरो नृपस्यराजाधिराजपरिपूजित: शुद्ध-बुद्धि:" भावार्थ यह कि [[महाराजा जयसिंह]] का [[मंत्री]] विद्याधर (वैदिक) [[गौड़]] [[जाति]] का [[बंगाली]]-[[ब्राह्मण]] है, देखने में बड़ा सुन्दर और बोलने में बड़ा सरल स्वभाव का है, विभिन्न कलाओं में निष्णात शुद्ध बुद्धि वाले (इस विद्याधर) को महाराजाधिराज जयसिंह बड़ा मान-सम्मान देते हैं." कविशिरोमणि [[भट्ट मथुरानाथ शास्त्री]] ने सन [[1947]] में 476 पृष्ठों में प्रकाशित अपना एक यशस्वी काव्य-ग्रन्थ '''[[जयपुर-वैभवम]]''' तो विद्याधर की अमर वास्तुकृति- [[जयपुर]] के नगर-सौंदर्य, दर्शनीय स्थानों, देवालयों, मार्गों, यहाँ के सम्मानित नागरिकों, उत्सवों और त्योहारों आदि पर ही केन्द्रित किया था|