"भारतीय साहित्य": अवतरणों में अंतर

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== भारतीय साहित्य - एक विहंगम् दृष्टि ==
सबसे पुराना जीवित साहित्य [[ऋग्वेद]] है जो [[संस्कृत]] भाषा में लिखा गया है। [[संस्कृत]],[[पालि]], [[प्राकृत]] और [[अपभ्रंश]] आदि अनेक भाषाओं से गुज़रते हुए आज हम भारतीय साहित्य के आधुनिक युग तक पहुंचे हैं। भारत मे ३० से भी ज्यादा मुख्य भाषाए है और १०० से भी अधिक क्षेत्रीय भाषाए है, लगभग हर भाषा मे साहित्य का प्रचुर विकास हुआ है। भारतीय भाषाओ के साहित्य मे लिखित और मौखिक दोनो ही महत्वपूर्ण है। प्राचीन भारतीय साहित्य मे हिन्दू धार्मिक ग्रंथो की अहम भूमीका रही। [[वेद|वेदो]] के साथ-साथ [[रामायण]] और [[महाभारत]] जैसे महाग्रंथ प्राचीन भारत मे रचे गए। अन्य प्राचीन ग्रंथो मे [[वास्तू शास्त्र]], [[कौतुल्य अर्थ-शास्त्र]], [[पंचतंत्र]], [[हितोपदेश]] आदी प्रमुख है। प्राचीन भारत के लेखको मे [[कवि कालीदास]] का खास वर्णन होता है, उनकी रचनाए संस्कृत मे है। इनमे प्रमुख है - [[अभिज्ञान शाकुंतलम]], [[मेघदूत]], [[ऋतुसंहार]], [[रघुवंशम]] और [[कुमारसंभवम]]।
 
 
ह िंदी साह त्य और आज का समाज : एक च िंतन
 
पऩछरे एक दशक भें ऩ ॉजी के असीभ पिस्ता य औय सॊचाय साधनों के अब तऩ िव पिकास ने पिश्ि फाजाय औय आर्थवक ब भॊडरीकयण की जो ब मभका यची है, उसभें भुनापा आधारयत उत्ऩाशदन प्रणारी को दुननमा के नमे फाजायों की जरूयत है। फॊद दयिाजे खुर यहे हैं। सीभाएॉ ट ट यही हैं, प्रनतफॊध सभाप्तम हो यहे हैं। शीतमुद्द की सभाप्प्त के फाद फीसिीॊ सदी के अॊनतभ दशक भें फदरी हुई याजनीनतक प्स्थ नतमों औय सॊचाय उऩकयणों भें आमी क्ाॊनत ने देशों के फीच बौगोमरक द रयमों औय याष्ट्रीधम सीभाओॊ को अप्रासॊर्गक फना ददमा है। नमी फाजाय सॊस्कृगनत इस आर्थवक ब भॊडरीकयण का एक अननिामव दहस्साण है। पिप्श्ि फाजाय अफ तक स्िाकमत्तस यहे सभाजों औय सॊस्कृप् नतमों के यहन-सहन, बाषा-ब षा, दैननक जीिन, आचयण औय भ ल्मृ-फोध का अऩने तयीके से अनुक रन कय यहा है।आज का सादहत्म प्रेभचॊद मुग के सादहत्म की तयह "सादशव" की अमबव्मप्तत नहीॊ कयता, कायण कक "आदशव ही फहुत सभम से राऩता हो गए हैं। ना "आदशव" जीिन फचा न आदशव सभाज, न आदशव भनुष्ट्म औय न ही आदशव प्स्थती, तमोंकक "आदशव" कक ऩरयबाषा औय ऩरयबाषा को चरयताथव कयने कक प्रकक्मा, जीिन के सॊप्श्रष्ट्ट मथाथव भें गड़फड़ हो गई है। चाह कय बी कपि कहानीकाय, उऩन्मासकाय, सॊिेदनशीर रेखक इस बुरबुरैमा से जीिन का उत्तय नहीॊ खोज ऩा यहा है। ऐसे भें सादहत्म औय सादहत्मकाय फहुत ईभानदायी से, सॊजीदगी के साथ (अऩनी सभझ से) इन अनुत्तरयत प्रश्नों को ऩाठकों के साभने यख कय अऩने कत्तवव्म का ऩारन कय यहा है।सादहत्म का उ􀆧ेश्म आधुननक सभाज भें, सभाज औय व्मप्तत के सॊफन्ध औय जीिन से सॊफॊर्धत प्रश्न को प्रस्तुत कयता है? आज से फीस-तीस िषव ऩ िव के सादहत्मकायों ने कुछ ऐसा ही सोचा औय भाना था ऩय प्रश्न उठा कय छोड़ देने से बी फात कुछ फनी नहीॊ तफ रेखक ने प्रश्न ऩय ननजी उत्तय देते हुए अनेक अन्म उत्तयों अथावत् र्चॊतन ददशाओॊ के द्िाय बी सॊबािना के तौय ऩय ऩाठकों के साभने खुरे छोड़ने प्रायॊब कय ददए। आज सादहत्मकायों के इन्हीॊ ननजी उत्तयों भें याजनैनतक भतों औय पिशेष साभाप्जक सॊदब… की छामाएॉ उतयती ददखाई देती हैं।द्पितीम पिश्िमुद्द के फाद से पिश्ि भें भनुष्ट्मता के प्रनत अपिश्िास औय जीिन की अननप्श्चतता के अहसास ने अनेक नए दशवनों औय र्चॊतन दृप्ष्ट्टमों को जन्भ ददमा था। दहन्दी सादहत्म भें बी इन र्चॊतन दृप्ष्ट्टमों को अनेक कृनतमों जैसे "अॊधामुग"(धभविीय बायती), शेखय: एक जीिनी (अऻेम) औय जैनेन्र कुभाय आदद अनेक सादहत्मकायों की यचनाओॊ भें देखा जा सकता है। सन सैंतारीस के फॊटिाये ने भनुष्ट्म के बीतय की ऩशुता का जो नग्न रूऩ ददखामा, उसने सादहत्म औय सादहत्मकायों को "आदशविाद" के "मुटोपऩमा" से ऩुयी तयह फाहय राकय ऩटक ददमा। मशऩार के "झ ठा-सच" उऩन्मास ने सादहत्म के उ􀆧ेश्म को एक नमा आमाभ ददमा - िह था सच का बफना डये, ज्मों का त्मों उद् घाटन कयना औय जीिनी शप्तत, सॊघषों औय ऩीड़ा के थऩेड़े खा
कय बी फची हुई जीिनी शप्तत की स्थाऩना कयना। सच ही तो है, जफ सादहत्म सभाज का दऩवण भाना जाता है, सभाज का दहत कयनेिारा कहा जाता है, तफ सभाज भें याजनेताओॊ के स्िाथव ऩ णव ननणवमों औय सभाज भें उन ननणवमों के प्रनतपर द्िाया उत्ऩन्न पिषैरी प्स्थनतमों को ऩाठकों के साभने राना बी सादहत्मकाय का ही काभ है।
मही "सच" फहुत ही धायदाय, पिश्रेषणात्भक दृप्ष्ट्ट के साथ फोरा है। तसरीभा नसयीन (फॊगरादेश की रेखखका) के उऩन्मास "रज्जा" ने, प्जसे िहाॉ की सयकाय ने इस्राभपियोधी मा कहें शासक पियोधी बी फता कय जब्त कय मरमा था। "रज्जा" उऩन्मास भें फॊगरादेशी दहन्दुओॊ ऩय िहाॉ के क􀍠यऩॊथी भुसरभानों द्िाया ढामे गए अत्माचायों का तथ्मात्भक िणवन है। महाॉ उऩन्मास की पिधा रयऩोदटिंग का बी काभ कयती है औय सॊपिधान के ननमभ-अर्धननमभ फताने िारी याजनैनतक शास्र की ऩुस्तक का काभ बी कयती है। "रज्जा" उऩन्मास की शप्तत, उसके द्िाया कहे सत्म की भामभवकता भें है, कठोय तथ्मों को फेधड़क हो प्रस्तुत कयने भें है। मशऩार औय तसरीभा नसयीन, औय उनके ही जैसे सत्म को धायदाय रूऩ भें ननबीकता से प्रस्तुत कयने िारे सादहत्मकायों ने सादहत्म के उ􀆧ेश्म को एक नमा ठोस आमाभ ददमा है, प्जसके चरते मह रगने रगा है कक अऩने देश औय सॊसाय भें जो उथर-ऩुथर भची है, भनुष्ट्मता औय जीिन दोनों को ही दाॊि ऩय रगा कय आॉतकिादी शप्ततमाॉ जो कुछ कय यही हैं, उसको बफना ककसी र्चॊतन औय दशवन का भुरम्भा (कोदटॊग) चढ़ाए हुए ही प्रस्तुत कयना चादहए ताकक जो कुछ साभने औय याजनेताओॊ के भन औय दफ़ ् ुतयों भें चर यहा है उसे साभने राकय, जनता को भ्रमभत होने से फचामा जाए।ग्माहय मसॊतफय, 2001 के आतॊकिादी हादसे औय तदुऩयान्त अफ़गाननस्तान औय ईया़ भें अभयीकी सैननकों द्िाया आतॊकिाददमों की खोज औय धय-ऩकड़ की रड़ाई ने, इतकीसिीॊ सदी को ऐसे अनेक ऩैने चुबनेिारे प्रश्नों के साभने रा खड़ा ककमा है। प्रश्न मह है कक साम्प्रदानमक दॊगों औय आतॊकिादी हभरों भें ककसी बी धभव औय उस धभव से जुड़े सभाज की तमा ब मभका होती है? प्रश्न मह है कक पिमबन्न धभों के जागरूक प्रनतननर्ध एक व्माऩक साभाप्जक सभझ का िाताियण कैसे ऩैदा कयें? तमा ऐसा कयने से ऩहरे उन्हें तामरफान औय उनके कभावनुरप्म्फमों, उनके कामों को सभथवन औय सहानुबुनत देनेिारे सभाज को बी कुछ सभझाने का काभ कयना होगा मा नहीॊ।सन् 2001 औय अफ मुद्द औय आॊतक की घटनाओॊ के फीच सादहत्म औय सादहत्मकाय को ऩुन: एक नमी कयिट रेनी होगी, जाग कय िास्तपिकता की चौंध को, आॉखों ऩय सुयऺा का कोई हाथ रगाए बफना ही देखना होगा। मह सच है कक भनुष्ट्म जीिन इन घटनाओॊ के फाद, ऩहरे जैसा नहीॊ यह गमा है। हादसों की आशॊकाओॊ से काॉऩते रृदमों भें बपिष्ट्म की कोई तस्िीय साप नहीॊ है। आभ आदभी पिमबन्न सयकायों द्िाया ककए जाने िारे कड़े सुयऺा प्रफन्धों से उत्ऩन्न झॊझटों की र्चड़र्चड़ाहट औय आतॊकिाददमों द्िाया इन सुयऺा प्रफन्धों के फीच से, फचकय ननकर आने औय असुयऺा पैराए जाने के डय के फीच झ र यहा है। मह जीिन की रासदी ही तो है। प्रश्न मह है कक सादहत्म जो सभाज का ’दऩणव’ औय सभाज को ददशा देने िारा कहा जाता है, िह
इस रासदीऩ णव सभम भें, इस रासदी को पिश्रेषणात्भक स्तय ऩय प्रस्तुत कयते हुए, बपिष्ट्म की ददशा कैसे फताए?सादहत्मकाय मह पिश्रेषण अऩनी यचनाओॊ भें तो प्रस्तुत कयते ही हैं .
सभम चाहे सैंतरीस का हो, सन् 71 के हभरे का, इॊददया गाॊधी द्िाया रगाई गमी आऩात्तकारीन प्स्थनत का, ऩॊजाफ, कश्भीय भें हुए नयसॊहाय का, फाफयी भप्स्जद ढहाने ऩय उत्ऩन्न सॊकट का मा येर के डडब्फे को सीर कय रोगों को जराने से उत्ऩन्न साम्प्रदानमक दॊगों का मा ईयाक भें मुद्द कयते मसऩादहमों का मा साऊदी अयफ भें अकेरे रयऩोटवय ऩॉर जॉनसन की ननभवभ हत्मा का--- हय फाय, हय घटना, हय सभम भें भुष्ट्म औय भनुष्ट्मता भयी है, भायी गई है औय शेष यह गई है प्जॊदा यहने की तीखी र्चॊताएॉ औय धुॊधरा मा रुप्तप्राम होता बपिष्ट्म!मह दुख औय र्चॊता से बया सच है। पिऻान औय तकनीक की प्रगनत, र्चॊतन औय दशवन के गहन भॊथन औय सॊिेदनशीरता के अतर भें उतयने के फाद तमा हभें अऩने फफवय आददभ रूऩ भें कपय आना होगा? तमा धभव औय सम्प्रदाम की रूदढ़मों से प्जऻासु की स्ितॊर सोच कपय फार्धत होगी? ऐसे भें सादहत्मकाय औय फुपद्दजीिी तमा हाथ ऩय हाथ धये ऐसे ही फैठे यहेंगे? तमा उनका प्स्थनत दशवन कयाना औय सुयक्षऺत पिश्ि की शुबकाभना कयने से कुछ हो ऩाएगा? मा कपय ननयाशा भें ड फा भन प्रनतकक्मािाद की ओय भुड़ जाएगा.
प्राम: कहा जाता यहा है कक करभ, तरिाय से अर्धक शप्ततशारी होती है। इस करभ की शप्तत को जाॉचने की ऩयीऺा ऩुन: आज के सादहत्मकायों के साभने आ खड़ी हुई है।जफ रूस औय फ्ाॊस की क्ाप्न्त भें मह करभ फड़ी ब मभका ननफाह सकती है, जफ बायत-चीन मुद्द भें ’ददनकय’ की करभ, येडडमो से ग ॉजती उनकी िाणी मसऩादहमों के हाथ औय भन भें ऊजाव बय सकती है तफ आज के कदठन, दुरुह सभम भें बी मह करभ अऩने स्िय की ऊजाव से कुछ सकायात्भक काभ कय सकती है, अबी मह भेया पिश्िास फाकी है। हाॉ, मह सत्म है कक ददशाएॉ आतॊक के सघन अॊधेये भें रुप्त हैं, हाॉ मह सत्म है कक ननयाशा से अिसन्न ऩैय उठना नहीॊ चाहते ऩय मह बी सत्म है कक जीिन की दैनॊददन सभस्माओॊ से ज झता आदभी अखफायों की खफयें ऩढ़ कय फहस कयना नहीॊ ब रता। "तमा होगा", "कैसे होगा" की दीिायों भें, उसकी सोच स याखें कयके अिरुद्द बपिष्ट्म को खोजने भें रगी हैं। जफ भनुष्ट्म नहीॊ हाया, जफ सभाज फहस के गभव भाहौर भें ददशाएॉ खोज यहा है तो सादहत्मकाय कैसे हाय सकता है, थक कय फैठ सकता है?
मुगचेता रेखकों औय यचनात्भक प्रनतबाओॊ की हभाये सभाज औय बाषा भें कभी नहीॊ- ऩय प्स्थनतमों की पिबीपषका भें बफना "कम्मुनर" हुए मा प्रनतकक्मािादी फने, अऩनी अप्स्भता, अऩने आत्भगिव औय सकायात्भकता को "सकक्म" ढॉग से सादहत्मकय कैसे स्थापऩत कये - मह एक फड़ा प्रश्न है। बफना "सकक्म" मानन व्माऩकरूऩ से अऩने होने औय अऩनी सोच को जताए बफना काभ नहीॊ चरेगा। ककसी एक देश के एक कोने, एक प्राॊत भें, एक फेहद साथवक ऩुस्तक प्रकामशत होकय मदद राख, हद से हद दो-तीन राख रोगों द्िाया ऩढ़ बी री जाती है तो
उससे उसके फाद तमा होगा? मानन कक फात िही है रेखक को, आज के सभम भें, इससे अर्धक सकक्म होने की आिश्मकता है, व्माऩक स्तय ऩय अऩने पैराने की आिश्मकता है औय इसमरए "मभडडमा" एक सशतत भाध्मभ फनता जा यहा है। पिश्ि भानि की फदरती र्चॊतनात्भकता तथा निीन जीिन प्स्थनतमों को व्मॊप्जत कयने की बयऩ य ऺभता दहॊदी सादहत्म भें है फशते इस ददशा भें अऩेक्षऺत फौपद्दक तैमायी तथा सुननमोप्जत पिशेषऻता हामसर की जाए। आखखय, उऩग्रह चैनर दहॊदी भें प्रसारयत कामवक्भों के जरयए मही कय यहे हैं। स्टाकय टीिी ने अॊग्रेजी कामवक्भों के भाध्मभभ से बायत के मशक्षऺत िगव तक ऩहुॉचने के मरए उसके ऩास कोई देशी मभजाज की साभग्री नहीॊ थी। ५ प्रनतशत से कभ की दशवक येदटॊग ककसी पिदेशी टीिी कामवक्भ का इतना आर्थवक आधाय नहीॊ फनाती कक प्रामोजक पिऻाऩन रेकय उस कामवक्भ की तयप दौड़ें। ऩरयणाभस्िारूऩ स्टा य टीिी ने न केिर सभाचायों औय पिदेशी कामवक्भों को दहन्दी ा भें ददखाना शुरू ककमा फप्ल्क उसने ऩॉऩ सॊगीत के देशी सॊस्केयण बी फना डारे। दहन्दीॊ कामवक्भ भ र अॊग्रेजी कामवक्भों से ज्मासदा रोकपप्रम होने रगे। फीफीसी औय डडप्स्कियी चैनर अऩने कामवक्भों को दहन्दीक भें बी प्रसारयत कयने रगे। आज रगबग सबी प्रभुख चैनरों ऩय फहुतामत दहन्दी कामवक्भों की है।
"तमा ऐसा नहीॊ हो सकता कक पिश्ि के रेखक - सादहत्मकाय एक जुट होकय आज के आतॊकिाद से बये भाहौर ऩय पिचाय कयते हुए कुछ, ददशाएॉ खोजें औय इन ददशाओॊ का सॊधान कयें अऩने रेखन से? दुननमा के भजद य औय ककसान एक जुट होकय क्ाॊनत कय सकते हैं तो पिश्ि के र्चन्तक, रेखक एक जुट होकय, नमी िैचारयक क्ाॊनत औय नमी स्िस्थ ददशा का सॊधान तमों नहीॊ कय सकते? जफ भुट्टी बय आतॊकिादी, फढ़ते-फढ़ते अऩने आतॊकिादी र्गयोहों को चोयी छुऩे सायी दुननमा भें पैरा सकते हैं तो हभ अनेकानेक रेखक औय पिचायक, खुरेरूऩ से, भीडडमा, पिऻान औय तकनीक का उऩमोग कय, जन साभान्म की फुझती आशाओॊ भें जीिन-शप्तत का तर डार कय उसे उ􀆧ीप्त नहीॊ कय सकते?आज जफ सभम कदठन है तो सादहत्म का उ􀆧ेश्म बी भहत् औय सॊप्श्रष्ट्ट है औय इस भहत् -सॊप्श्रष्ट्ट उ􀆧ेश्म की ऩ नतव कैसे की जाए - इस ऩय पिचाय फहस होना फहुत जरूयी है। आज जरूयत इस फात की है कक हभ सादहत्म को ’मादों’, ’ननयाशाओॊ ’औय ’दाशवननक रहजों’ से ननक!र कय फुयाई, आतॊक, भ्रष्ट्ट व्मिस्था औय रूऩ फदर कय फैठी साम्प्रदानमकता ऩय औय सकायात्भकता औय जीिन की स्थाऩना, कय सकें। मह तबी सॊबि है जफ रोग अऩने दानमत्िफोध को गहयाइमों तक भहस स कयें औय सुदृढ़ इच्छाशप्तत के साथ सॊकप्ल्ऩत हों। इसके मरए सभिेत प्रमास की जरूयत है।
 
== यह भी देखें ==