"महात्मा रामचन्द्र वीर": अवतरणों में अंतर

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== वंश-परिचय और स्वामी-कुल-परम्परा ==
जयपुर राज्य के पूर्वोत्तर में स्थित ऐतिहासिक तीर्थ विराटनगर (बैराठ) के पार्श्व में पवित्र बाणगंगा के तट पर मैड नमक छोटे से ग्राम में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण संत, लश्करी संप्रदाय के अनुयायी थे। गृहस्थ होते हुए भी अपने सम्प्रदाय के साधुगण और जनता द्वारा उन्हें साधु-संतों के सामान आदर और सम्मान प्राप्त था। राजा और सामंत उनको शीश नवाते थे और ब्राह्मण समुदाय उन्हें अपना शिरोमणि मानता था। भगवान नरसिंहदेव के उपासक इन महात्मा का नाम स्वामी गोपालदास था। गोतम गौड़ ब्राह्मणों के इस परिवार को 'स्वामी' का सम्मानीय संबोधन, जो भारत में संतों और साधुओ को ही प्राप्त है, लश्करी-संप्रदाय के द्वारा ही प्राप्त हुआ था, क्योंकि कठोर सांप्रदायिक अनुशासन के उस युग में चाहे जो उपाधि धारण कर लेना सरल नहीं था। मुग़ल बादशाह [[औरंगजेब]] द्वारा हिन्दुओहिन्दुओं पर लगाये गए 'श्मशान कर' के विरोध में अपना बलिदान देने वाले '''महात्मा गोपालदास जी''' इनके पूर्वज थे। [[जजिया कर]] की अपमानजनक वसूली और विधर्मी सैनिकों के अत्याचारों से क्षुब्ध स्वामी गोपालदास धर्म के लिए प्राणोत्सर्ग करने के अपने संकल्प से प्रेरित होकर दिल्ली जा पहुंचे। उन तेजस्वी संत ने मुग़ल बादशाह के दरबार में किसी प्रकार से प्रवेश पा लिया और आततायी औरंगजेब को हिन्दुओं पर अत्याचार न करने की चेतावनी देते हुए, म्लेच्छों द्वारा शरीर का स्पर्श करके बंदी बनाये जाने से पूर्व ही, कृपाण से अपना पेट चीर कर देखते-देखते दरबार में ही अपने प्राण विसर्जित कर दिए। महाराज जी का रोम-रोम राष्ट्रभक्ति, हिन्दुत्व व संस्कृति से ओतप्रोत था। वीर जी ऐसे प्राणिवत्सल संत थे जिनकी दहाड़ से, ओजस्वी वाणी से, पैनी लेखनी के वार से राष्ट्रद्रोही व धर्मद्रोही कांप उठते थे। वीर जी ऐसे संत थे जिनका हृदय धर्म के नाम पर दी जाने वाली निरीह प्राणियों की बलि देख कर द्रवित हो उठता था।
 
== जीवन संघर्ष और कठोर तपश्चर्या ==