"विद्युत कर्षण": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
विद्युत्‌-कर्षण-तंत्र में विद्युत्‌ मोटरों द्वारा चालित [[लोकोमोटिव]] (locomotive) गाड़ी को खींचता है। रेल की लाइन के साथ ऊपर में एक विद्युत्‌ लाइन होती हैं, जिससे चालक गाड़ी एक चलनशील बुरुश द्वारा संपर्क करती है। रेल की लाइन, निगेटिव लाइन का काम देती है और शून्य वोल्टता पर होती है। इसके लिये इसे अच्छी प्रकार भूमित (earthed) भी कर दिया जाता है। इस प्रकार इसे छूने से किसी प्रकार की दुर्घटना की संभावना नहीं रहती। ऊपरी लाइन की बोल्टता, प्रयोग की जानेवाली [[विद्युत मोटर|मोटरों]] एवं संभरणतंत्र पर निर्भर करती है। पुराने तंत्रों में ६०० वोल्ट की वोल्टता साधारणतया प्रयोग की जाती है यद्यपि १,५०० वोल्ट एवं ३,००० वोल्ट भी अब सामान्य हो गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में, उच्च वोल्टता तंत्रों की रचना की गई है और उच्च वोल्टता पर प्रवर्तित होनेवाले एकप्रावस्था (single phase) प्रत्यावर्ती धारातंत्र का प्रयोग किया गया है और अब सामान्यत: इन्हीं का प्रयोग होने लगा है। ये सामान्यत: १६,००० अथवा २५,००० वोल्ट की वेल्टता पर प्रवर्तित होते हैं।
[[चित्र:Verkehrsmuseum Dresden E 50 Motor.jpg|right|thumb|300px|पुराने विद्युत रेल इंजनों में विद्युत मोटर और पहिये 'रॉड' द्वारा जुड़े होते थे।]]
 
[[चित्र:Traction motor german-class140.jpg|right|thumb|300px|आधुनिक कर्षण मोटर]]
विद्युत्कर्षण के लिए प्रयोग होनेवाली मोटरों को आरंभ में अधिकतम कर्षण आघूर्ण (torque) का उपलब्ध करना आवश्यक होता है, क्योंकि किसी भी गाड़ी को खींचने के लिए आरंभ में बहुत शक्ति की आवश्यकता होती है, परंतु जैसे-जैसे वेग बढ़ता जाता है, कम शक्ति की आवश्यकता होती है। आरंभ में अधिक आघूर्ण से [[त्वरण]] (acceleration) शीघ्रता से उत्पन्न किया जा सकता है। इन मोटरों को अल्प समय के लिए अतिभार (overload) सँभालने की क्षमता भी होनी चाहिए। इन लक्षणों के अनुसार [[दिष्ट धारा श्रेणी मोटर]] (D.C. series motor) सबसे अधिक उपयुक्त होती है तथा सामान्य रूप से व्यवहार में आती हैं, परंतु दिष्ट धारा मोटरें सामान्यत: उच्च वोल्टता पर प्रवर्तन के लिए उपयुक्त नहीं होतीं और इस कारण दि.धा. कर्षणतंत्र सामान्यत: ३,००० वोल्ट तक के ही होते हैं दि. धा. तंत्रों की अपेक्षा प्र.धा. तंत्र संभरण अधिक समान्य हेने के कारण, कर्षण में भी इनका प्रयोग करने के प्रयत्न बराबर किए जाते रहे हैं। कुछ विशिष्ट प्ररूप की दि.धा. मोटरें, लक्षण में दि.धा. श्रेणी मोटर के समान होती हैं। इनकी संरचना पिछले ५० वर्षों से ही शोध का सामान्य विषय रही है और अब ऐसी एकप्रावस्था दि.धा. मोटरें बनाई गई हैं जिनके लक्षण दि.धा. श्रेणी मोटरों के समान कर्षण के लिए उपयुक्त हों। इन [[प्रत्यावर्ती धारा]] मोटरों का भार उसी शक्ति की दि.धा. मोटरों से काफी कम होती है और ये सपेक्षतया सस्ती होती हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ इनके उच्च वोल्टता पर प्रवर्तन में है। इस कारण उच्च वोल्टता तंत्र प्रयोग करना संभव है, जिससे कर्षणतंत्र में पर्याप्त बचत की जा सकती है। परंतु ये मोटरें सामान्य शक्ति आवृत्ति (power frequency) पर उपयुक्त लक्षण नहीं दे पातीं। इनका प्रवर्तन कम आवृत्ति पर अधिक संतोषप्रद होता है। अत: कर्षण के लिए सामान्यत:, अथवा २५ चक्रीय आवृत्ति का प्रयोग किया जाता है। इस कारण इन्हें सामान्य संभरणतंत्रों से नहीं संभरण किया जा सकता है। एकप्रावस्था तंत्र होने के कारण [[विद्युत उपकेन्द्र|उपकेंद्र]] (substation) पर प्रावस्था संतुलन (phase balancing) की समस्या भी रहती है। परंतु इन समस्याओं के उपयुक्त समाधान हो चुके हैं और अब १६,००० और २५,००० वोल्ट के, अथवा २५ चक्रीय आवृत्ति के, एकप्रावस्था वाले प्र.धा. तंत्र कर्षण के लिए सामान्य रूप से प्रयोग किए जाते हैं।