"यमुनोत्री": अवतरणों में अंतर
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==अवस्थिति==
'''यमुनोत्री''' ऋषिकेश से २१० किलोमीटर और हरिद्वार से २५५ किलोमीटर सड़क मार्ग से जुड़ा उत्तराखंड का समुद्रतल से १० हज़ार फीट ऊंचा एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ है|
==यमुनोत्री-महिमा==
इसकी महिमा पुराणों ने यों गाई है-
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अर्थात ''(जहाँ से यमुना निकली है वहां स्नान करने और वहां का जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते हैं!)''
==सूर्य-पुत्री==
[[सूर्यतनया]] का शाब्दिक अर्थ है [[सूर्य]] की पुत्री अर्थात् [[यमुना]]। पुराणों में यमुना सूर्य-पुत्री कही गयी हैं। सूर्य की छाया और संज्ञा नामक दो पत्नियों से यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं। [[भ्रातृ द्वितीया]] ([[भैयादूज]]) पर यमुना के दर्शन और [[मथुरा]] में स्नान का विशेष महात्म्य है। यमुना सर्वप्रथम जलरूप से [[कलिंद]] पर्वत पर आयीं, इसलिए इनका एक नाम [[कालिंदी]] भी है। सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। यमुनोत्तरी धाम सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान [[श्रीकृष्ण ]]की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं। यमुना के भाई [[शनि]]देव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर [[खरसाली]] में है।
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कहा गया है-जो व्यक्ति यमुनोत्तरी धाम आकर यमुनाजी के पवित्र जल में स्नान करते हैं तथा यमुनोत्तरी के सान्निध्य खरसाली में शनिदेव का दर्शन करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यमुनोत्तरी में सूर्यकुंड, दिव्यशिला और विष्णुकुंड के स्पर्श और दर्शन मात्र से लोग समस्त पापों से मुक्त होकर परमपद को प्राप्त हो जाते हैं।
==यमुनोत्री का प्रधान मंदिर==
यमुनोत्तरी मंदिर के कपाट वैशाख माह की शुक्ल अक्षय तृतीय को खोले जाते और कार्तिक माह की यम-द्वितीय को बंद कर दिए जाते हैं| यमुनोत्तरी मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन १८८५ ईस्वी को गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था, वर्तमान स्वरुप के मंदिर निर्माण का श्रेय गढ़वाल नरेश प्रताप शाह को है|
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