"रामभद्राचार्य": अवतरणों में अंतर

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एकश्रुत प्रतिभा से युक्त बालक गिरिधर ने अपने पड़ोसी पण्डित मुरलीधर मिश्र की सहायता से पाँच वर्ष की आयु में मात्र पन्द्रह दिनों में श्लोक संख्या सहित सात सौ श्लोकों वाली सम्पूर्ण भगवद्गीता कण्ठस्थ कर ली। १९५५ ई में [[जन्माष्टमी]] के दिन उन्होंने सम्पूर्ण गीता का पाठ किया।<ref name="outlook"/><ref name="dinkarearlylife"/><ref name="parauha">{{cite book | last=परौहा | first=तुलसीदास | editor-first=स्वामी | editor-last=रामभद्राचार्य | title=गीतरामायणम् (गीतसीताभिरामं संस्कृतगीतमहाकाव्यम्) | chapter=महाकविजगद्गुरुस्वामिरामभद्राचार्याणां व्यक्तित्वं कृतित्वञ्च | publisher=जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | date=जनवरी १४, २०११ | pages=५–९ | language=संस्कृत}}</ref> संयोगवश, गीता कण्ठस्थ करने के ५२ वर्ष बाद नवम्बर ३०, २००७ ई के दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संस्कृत मूलपाठ और हिन्दी टीका सहित भगवद्गीता के सर्वप्रथम ब्रेल लिपि में अंकित संस्करण का विमोचन किया।<ref>{{cite web | publisher=एस्ट्रो ज्योति | title = Vedic scriptures and stotras for the Blind people in Braille | language=अंग्रेज़ी | url = http://www.astrojyoti.info/helpfortheblind.htm | accessdate=जून २५, २०११}}</ref><ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | publisher=एस्ट्रो ज्योति | title = Braille Bhagavad Gita inauguration | url = http://astrojyoti.info/blindgitainaguration.htm | accessdate=जून २५, २०११}}</ref><ref>{{cite web | last=ब्यूरो रिपोर्ट | language=अंग्रेज़ी | publisher=ज़ी न्यूज़ | title = Bhagavad Gita in Braille Language | url = http://www.zeenews.com/news411003.html | date = दिसम्बर ३, २००७ | accessdate=जून २५, २०११}}</ref><ref>{{cite web | last=एशियन न्यूज़ इंटरनेशनल | publisher=वेबदुनिया हिन्दी | title = अब ब्रेल लिपि में भगवद्गीता | url = http://hindi.webdunia.com/news/news/regional/0712/06/1071206064_1.htm | date = दिसम्बर ६, २००७ | accessdate = जुलाई २, २०११}}</ref> सात वर्ष की आयु में गिरिधर ने अपने पितामह की सहायता से छन्द संख्या सहित सम्पूर्ण [[श्रीरामचरितमानस]] साठ दिनों में कण्ठस्थ कर ली। १९५७ ई में [[रामनवमी]] के दिन व्रत के दौरान उन्होंने मानस का पूर्ण पाठ किया।<ref name="dinkarearlylife"/><ref name="parauha"/> कालान्तर में गिरिधर ने समस्त [[वेद|वैदिक वाङ्मय]], संस्कृत व्याकरण, [[भागवत]], प्रमुख उपनिषद्, संत तुलसीदास की सभी रचनाओं और अन्य अनेक संस्कृत और भारतीय साहित्य की रचनाओं को कण्ठस्थ कर लिया।<ref name="outlook"/><ref name="dinkarearlylife"/>
 
=== उपनयन और कथावाचन === Hindi Janeu
 
गिरिधर मिश्र का [[उपनयन]] संस्कार निर्जला एकादशी के दिन जून २४, १९६१ ई को हुआ। [[अयोध्या]] के पण्डित ईश्वरदास महाराज ने उन्हें [[गायत्री मन्त्र]] के साथ-साथ [[राम|राममन्त्र]] की [[दीक्षा]] भी दी। भगवद्गीता और रामचरितमानस का अभ्यास अल्पायु में ही कर लेने के बाद गिरिधर अपने गाँव के समीप [[अधिक मास]] में होने वाले [[:en:Katha (storytelling format)|रामकथा]] कार्यक्रमों में जाने लगे। दो बार कथा कार्यक्रमों में जाने के बाद तीसरे कार्यक्रम में उन्होंने रामचरितमानस पर कथा प्रस्तुत की, जिसे कईं कथावाचकों ने सराहा।<ref name="dinkarearlylife"/>