"मृच्छकटिकम्": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Raja Ravi Varma, Vasanthasena (Oleographic print).jpg|right|thumb|300px|[[राजा रवि वर्मा]] द्वारा चित्रित '''वसन्तसेना''']]
'''मृच्छकटिकम्''' (अर्थात्, मिट्टी की गाड़ी) [[संस्कृत]] [[नाटक|नाट्य साहित्य]] में सबसे अधिक लोकप्रिय [[रूपक]] है। इसमें 10 अंक है। इसके रचनाकार महाराज [[शूद्रक]] हैं। नाटक की पृष्टभूमि [[पाटलिपुत्र]] (आधुनिक [[पटना]]) है। [[भरत मुनि|भरत]] के अनुसार दस रूपों में से यह 'मिश्र प्रकरण' का सर्वोत्तम निदर्शन है। ‘मृच्छकटिकम’ नाटक इसका प्रमाण है कि अंतिम आदमी को साहित्य में जगह देने की परम्परा भारत को विरासत में मिली है जहाँ चोर, गणिका, गरीब ब्राह्मण, दासी, नाई जैसे लोग दुष्ट राजा की सत्ता पलट कर गणराज्य स्थापित कर अंतिम आदमी से नायकत्व को प्राप्त होते हैं।
== कथावस्तु ==
इसकी कथावस्तु तत्कालीन समाज का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करती है। यह केवल व्यक्तिगत विषय पर ही नहीं अपितु इस युग की शासन व्यवस्था एवं राज्य स्थिति पर भी प्रचुर प्रकाश डालता है। साथ ही साथ वह नागरिक जीवन का भी यथावत् चित्र अंकित करता है। इसमें नगर की साज-सजावट, [[वेश्या|वारांगनाओं]] का व्यवहार, दास प्रथा, [[जुआ|द्यूत]] क्रीड़ा, विट की धूर्तता, [[चोरी|चौर्यकर्म]], न्यायालय में न्यायनिर्णय की व्यवस्था, अवांछित राजा के प्रति प्रजा के द्रोह, एवं जनमत के प्रभुत्व का सामाजिक स्वरूप भली भाँति चित्रित किया गया है। साथ ही समाज में दरिद्रजन की स्थिति, गुणियों का संमान, सुख दु:ख में समरूप मैत्री के बिदर्शन, उपकृत वर्ग की कृतज्ञता, निरपराध के प्रति दंड पर क्षोभ, राज वल्लभों के अत्याचार, वारनारी की समृद्धि एवं उदारता, प्रणय की वेदी पर बलिदान, कुलांगनाओं का आदर्श चरित्र जैसे वैयक्तिक विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है। इस विशेषाता के कारण यह याथर्थवादी रचना संस्कृत साहित्य में अनूठी है। इसी कारण यह पाश्चात्य सहृदयों का अत्यधिक प्रिय लगी। इसका अनुवाद विविध भाषाओं में हो चुका है, और भारत तथा सुदूर [[अमेरीका]], [[रूस]], [[फ्रांस]], [[जर्मनी]], [[इटली]], [[इंग्लैड]] के अनेक रंगमंचों पर इसका सफल अभिनय भी किया जा चुका है।
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