"बीटी बैंगन": अवतरणों में अंतर

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'''बीटी बैंगन''' (''बैसिलस थुरियनजीनिसस'' बैंगन) जिसे [[बीटी कपास|बीटी कॉटन (कपास)]] के रूप में निर्मित किया गया है, एक [[आनुवांशिक संशोधित फसल]] है। बीटी को बैसिलस थुरियनजीनिसस (बीटी) नामक एक मृदा जीवाणु से प्राप्त किया जाता है। बीटी बैंगन और बीटी कपास (कॉटन) दोनों में इस विधि का प्रयोग होता है। [[आनुवांशिक संशोधित फसल]] (''जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलें'') यानी ऐसी फसलें जिनके [[गुणसूत्र]] में कुछ मामूली से परिवर्तन कर के उनके आकार-प्रकार और गुणवत्ता में मनवांछित स्वरूप प्राप्त किया जा सकता है। यह गुणवत्ता परिवर्तन फसल में कीटाणुनाशकों से लड़ने की क्षमता या पौष्टिकता में की वृद्धि रूप में भी हो सकती है। इसी वैज्ञानिक या अप्राकृतिक परिवर्तन को [[आनुवांशिक संशोधित फसल]] कहा जाता है। कई फसलों में आनुवांशिक (जीन्स में) परिवर्तन किया गया है। मकई, जिससे बना कॉर्नफ्लैक्स प्रात: नाश्ते में प्रयोग किया जाता है, भी इस प्रकार का ही एक संशोधित खाद्य है।
 
== विधि ==
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जीएम फसलों से जुड़े उत्पादन संबंधी विषय भी हैं। साथ ही इससे जुड़े स्वास्थ्य और पर्यावरण मुद्दे भी हैं जिन पर विवाद जारी हैं। जीएम फसलों की लगातार जांच जारी है ताकि इससे जुड़ी एलर्जी आदि का पता चल सके। अभी तक कुछ ही मामलों में जीन ट्रांसफर समस्या का पता चल सका है। पर्यावरण पुरोधाओं का डर है कि निषेचित जीन अपने कार्य से इतर कार्रवाई कर सकता है जिस कारण अन्य पौधों को भी नुकसान पहुंचने का खतरा बना हुआ है। कुछ शोधों में ऐसा होता हुआ पाया भी गया है, लेकिन इसके मानव और पौधों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दूरगामी असर के बारे में अभी तक बाकायदा तरीके से विमर्श सामने नहीं आया है और इसी कारण पर्यावरण विशेषज्ञों की ओर से सवाल अभी तक कायम है।
 
==लाभ-हानि==
फायदे और नुकसान
पारंपरिक फसल उत्पादन से इतर जीन बदलाव से फसलों को न केवल हानिकारक कीटनाशकों से जूझने की क्षमता प्राप्त होती है, बल्कि उनमें सूखा झेलने और बेहतर पोषकता देने के गुण भी आते हैं। जीएम फसलें जल्द उगती हैं और उनकी कीमत कम होती है। ऐच्छिक बदलाव कुछ ही फसलें उगाकर प्राप्त किए जा सकते हैं। फसल के स्वाद आदि में बेहतरी के साथ गुणकारी तत्वों में बेहतरी से चुनने की क्षमता प्राप्त होती है और फसल में अनैच्छिक व व्यर्थ तत्वों की पुनरावृत्ति नहीं होती।
 
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स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो अभी तक इसका कोई पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं है कि जीएम फसलों से सेहत को सीधे तौर पर कोई नुकसान पहुंचता हो। हालांकि, इस बात की कोई गारंटी भी नहीं है। जीएम फसलों से अनजाने में एलर्जी, एंटीबायटिक विरोध, पोषण की कमी और विषाक्तता (टॉक्सिंस) हो सकती है। इसके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि हरेक भूखे पेट तक भोजन पहुंचाने के लिए हमें अपनी पारंपरिक भोजन शैली को ही आधार बनाना होगा।
 
==भारतीय संदर्भ==
सन् 2002 में देश में 55 हजार किसानों ने देश के चार मध्य और दक्षिणी राज्यों में कपास फसल उगाई थी। फसल रोपने के चार माह बाद कपास के ऊपर उगने वाली रुई ने बढ़ना बंद कर दिया था। इसके बाद पत्तियां गिरने लगीं। बॉलवर्म भी फसलों को नुकसान पहुंचाने लगा था। अकेले आंध्र प्रदेश में ही कपास की 79 प्रतिशत फसल को नुकसान पहुंचा था।
 
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वैसे कुल 56 जीएम फसलों के उत्पादन की तैयारी है जिनमें से 41 खाद्यान्न से जुड़ी हैं। हालांकि, बीटी कॉटन व्यावसायिक तौर पर जारी किया जा चुका है और इसे सफलता मिली है। लेकिन अन्य जो फसलें जिन पर अभी प्रयोगशाला में शोध चल रहे हैं वह हैं गेहूं, बासमती चावल, सेब, केला, पपीता, प्याज, तरबूज, मिर्च, कॉफी और सोयाबीन। कई गैर खाद्यान्न फसलों पर भी शोध जारी हैं।
 
==अभी हाल में==
जीएम फसलों से जुड़े तमाम विरोधों को देखते हुए हाल में सरकार ने बायोटेक्नोलॉजी रेगुलेटरी अथॉरिटी बिल पर तेजी से कार्य करने का निर्णय लिया है। भारत में बीटी खाद्यान्न पर उठी बहस को लेकर पर्यावरण मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि वह फिलहाल बीटी बैंगन की खेती को रोके रखेगी। बिल में जन स्वास्थ्य से जुड़े इस संबंध में एक तीन सदस्यीय स्वायत्त बायोटेक्नोलॉजी रेगुलेटरी अथॉरिटी की सिफारिश की गई है। इसके अतिरिक्त यह अथॉरिटी जीएम राइस और जीएम टमाटर आदि के प्रयोगों और उत्पादन संबंधी परीक्षणों पर भी नजर रखेगी। यानी इस अथॉरिटी के पास जीएम फसलों के व्यवसाय से जुड़े सभी उद्यमियों को अपने पास बुलाने का और समूचे जीएम व्यवसाय क्षेत्र पर नजर रखने का विशेषाधिकार होगा।
 
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यानी कहना न होगा कि यदि यह बिल शीघ्र संसद के जरिए नए कानून के तौर पर सामने आता है तो उसके तहत देश में बायोटेक उत्पादों पर शोध, उत्पादन और उनसे जुड़े व्यापार पर नए सिरे से नियामक लागू होंगे।
 
==जीएम बीज का विवाद==
सन् 1996 में पहली जीएम फसल के कमर्शियल इस्तेमाल के बाद से अब तक दुनिया की आठ प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर जीएम फसलों की खेती चल रही है। आमतौर पर किसानों को अपनी पिछली फसल के कुछ हिस्से को बचाकर रखना पड़ता है ताकि अगली फसल रोपी जा सके। लेकिन जीएम फसलों के लिए विशेष बीज चाहिए होते हैं। यह बीज महंगे होते हैं और आम किसान की पहुंच से दूर भी। इनके पुन: इस्तेमाल के लिए रॉयल्टी देनी होती है और किसान अपने खेत की पिछली फसल के बीज को दोबारा इस्तेमाल नहीं कर सकते। और साथ ही यह भी तर्क दिया जाता है कि बेहतर फसल और कीटनाशकों के कम इस्तेमाल के कारण किसान अधिक पूंजी बचा लेते हैं, इसलिए उन्हें अगली फसल के लिए बीजों का भुगतान करना चाहिए। यही कारण है कि सरकार ने भी जोर देकर जीएम फसल संबंधी कड़े नियामक लागू करने की बात कही है।
 
==कहां, कितनी जीएम फसलें?==
दुनिया के कई देशों में जीएम फसलें इस्तेमाल में लाई जाती हैं। इनमें उत्तर और दक्षिण अमेरिका के अधिकांश देश शामिल हैं जहां सोयाबीन, मक्का, राई और चुकंदर आदि की जीएम फसलें उगाई और इस्तेमाल में लाई जाती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में पूरी दुनिया की आधी से अधिक जीएम फसलें इस्तेमाल की जाती हैं। इसके विपरीत यूरोप के केवल सात देशों में ही अभी तक जीएम फसलों के इस्तेमाल को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है। एशिया में भी भारत और चीन समेत केवल तीन देशों में ही जीएम फसलों को इस्तेमाल में लाए जाने की शुरुआत हुई है, लेकिन इसके लिए कड़े नियामक हैं। अफ्रीका में भी केवल तीन देश ही हैं जिन्होंने जीएम फसलों के इस्तेमाल की इजाजत अभी तक दी है।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[बीटी कपास]]
*[[आनुवांशिक संशोधित फसल]]
 
[[श्रेणी:जैवप्रौद्योगिकी]]