"सुचेता कृपलानी": अवतरणों में अंतर

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स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती '''सुचेता कृपलानी''' के योगदान को भी हमेशा याद किया जाएगा। १९०८ में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा हुई। १९४६ में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गई। १९५८ से १९६० तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी। १९६३ से १९६७ तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 1 दिसंबर १९७४ को उनका निधन हो गया। अपने शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि "सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थीं, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।"
 
'''सुचेता कृपलानी''' को देश की पहली महिला [[मुख्य मंत्री]] थीं। ये बंटवारे की त्रासदी में [[महात्मा गांधी]] के बेहद करीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने बापू के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गई। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य के कर्मचारियों ने लगातार 62 दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुई, जब उनके रुख में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे।
 
== संदर्भ ==