"भू-संतुलन": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Airy Isostasy.jpg|right|thumb|300px|वायु भूसंतुलन]]
'''भू-संतुलन''' (lsostasy) का अर्थ है, पृथ्वी के संतुलन बनाए रखने की अवस्था। इस तथ्य का उद्भव सन्‌ 1859 में उत्तरी [[भारत]] के त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के समय हुआ। कल्याना जो [[हिमालय]] की तलहटी में स्थित है और कल्यानपुर की, जो उससे लगभग 375 मील की दूरी पर स्थित है, दूरी त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण से ज्ञात की गई। इस दूरी और खगोलात्मक आधार पर ज्ञात दूरी में पाँच सेकंड (500 फुट) का अंतर पड़ा। यह अंतर हिमालय के आकर्षण के फलस्वरूप था, जिसका प्रभाव साहुल सूत्र (plumb line) पर पड़ा और वह एक ओर को हट गया। प्रैट (Pratt) ने बतलाया कि विशाल हिमालय के प्रभाव से इस दूरी में 15 सेकंड का अंतर पड़ना चाहिए था। अत: यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि किन कारणों से हिमालय पर्वत का पूरा प्रभाव साहुल सूत्र पर नहीं पड़ा। इसश्इस त्रुटि को इस मान्यता के आधार पर समझाया गया कि पर्वतों के नीचे पृष्ठीय क्षेत्र में संहति की कमी है, अर्थात गहराई तक शिलाओं का धनत्व अपेक्षाकृत कम है।
 
भूसंतुलनवाद के अनुसार विशाल भू-रचनाएँ, जैसे ऊँची-ऊँची पर्वतमालाएँ, पठार, मैदान आदि, संतुलन की अवस्था में रहते हैं। चिप्पड़ की इन भिन्न भिन्न इकाइयों का भार समुद्र की सतह से नीचे एक समतल पर समान है। इसे भूदाबपूर्ति स्तर (compensation level) कहा जाता है। इस विचारधारा को समझाने के लिये एयरी ने पानी पर तैरते हुए लकड़ी के लट्ठों का उदाहरण रखा। इन लट्ठों की अनुप्रस्थ काट तो समान होनी चाहिए, पर लंबाई भिन्न हो सकती है। पानी में संतुलन की अवस्था में मोटे लट्ठों पतले लट्ठों की अपेक्षा जल से ऊपर अधिक ऊँचाई तक निकले रहते हैं और जल के नीचे भी अधिक गहराई तक डूबे रहते हैं। पृथ्वी का पृष्ठभाग भी अपने से अधिक धनत्ववाले अध:स्तर पर बर्फ की भाँति तैर रहा है। ऊँची ऊँची पर्वतमालाओं की जड़ें इसमें अधिक गहराई तक चली गई है। आधुनिक गवेषणओं से इस बात की पुष्टि भी हुई है। भूकंप लहरों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि पर्वतमालाओं के नीचे सियाल (sial) पदार्थ लगभग 40 किमी0 या उससे भी अधिक गहराई तक विद्यमान है। मैदानों के नीचे की मोटाई 10 से 12 किमी0 तक है और सागरतल के नीचे तो यह पर्त बहुत ही पतली है और कहीं कहीं पर तो विद्यमान भी नहीं है।
 
प्रैट के अनुसार पृथ्वी की सतह पर की अनियमितताएँ इकाई क्षेत्रों के भिन्न भिन्न धनत्वों के कारण हैं। इसे समझाने के लिये आपने निम्नलिखित उदाहरण दिया। समान अनुप्रस्थ काटवाले, किंतु भिन्न भिन्न धातुओं के, खंडों को पारद से भरे बर्तन में रखने पर सभी खडों के नीचे का भाग एक समतल में रहता है, क्योकि वे सभी समान मात्रा में पारद का विस्थापन करते हैं, पर पारे से ऊपर भिन्न धातुओं के खंडों की ऊँचाई भिन्न भिन्न रहती है । हाइसकानेन के अनुसार घनत्व ऊँचाई के साथ विचरता है। ऊपर जाने पर वह कम होता है और नीचे जाने पर बढ़ता है। सागरतल पर यह 2.76 ग्राम प्रति धन सेंमी0 और नीन किमी0 ऊँचाई पर 2.70 ग्राम प्रति धन सेंमी0 होता है। किसी भी स्तंभ में हलकी शिलाओं में घनत्व एक किलोमीटर पर 0.004 ग्राम प्रति घन सेंमी0 बढ़ता हैं और भारी शिलाओं में इससे आधी गति से। अत: भूदाबपूर्ति स्तर पर सब जगह समान भार पड़ता है। घनत्व के विचरण पर आधारित यह वाद (ism) भौमिकश्भौमिक दृष्टि से उपयुक्त है।
 
[[श्रेणी:भूगतिकी]]