"विद्याधर चक्रवर्ती": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Hemant Shesh (वार्ता | योगदान) |
|||
पंक्ति 32:
इतिहास से ज्ञात होता है एक पुत्र मुरलीधर के अलावा विद्याधर के दो पुत्रियाँ भी थीं- मायादेवी और कम्यादेवी. मायादेवी ने त्रिपोलिया के बाहर 'चौड़े-रास्ते' में प्रसिद्ध शिवालय 'ताड़केश्वरजी मंदिर' की प्रतिष्ठा करवाई और यों अपने पिता की स्मृति को चिरस्थाई बनाया, वहीं आमेर के 'बकाण के कुँए' के पास एक और शिव-मंदिर भी ( संभवतः अपने पिता की याद में (?) निर्मित करवाया. इन्हीं मायादेवी के पुत्र ''हरिहर चक्रवर्ती'' की [[महाराजा ईश्वरीसिंह]] के शासन में 'देश-दीवान' के मंत्री-पद पर नियुक्ति की गयी.<ref> 5.'जयपुर-दर्शन' प्रकाशक : प्रधान-सम्पादक : [डॉ. प्रभुदयाल शर्मा 'सहृदय'नाट्याचार्य] वर्ष 1978 [पेज 210] प्रकाशक : जयपुर अढाई शती समारोह समिति, नगर विकास व्यास (अब जयपुर विकास प्राधिकरण) परिसर, भवानी सिंह मार्ग, जयपुर,</ref>
[[File:The Indur Mahal -Chandra Mahal- from the garden, Jeypore.jpg|thumb| जयपुर का 'चन्द्रमहल' : जिसके वास्तुविद विद्याधर थे ]]
==विद्याधर के पूर्वज और मथुरा के राजा कंस की शिला==
विद्याधर के वंशज (प्रपौत्र के पौत्र) सूरजबक्श की जानकारी<ref> 6. 'जयपुर-दर्शन' प्रकाशक : 'जयपुर अढाईशती समारोह समिति' प्रधान-सम्पादक : डॉ. प्रभुदयाल शर्मा 'सहृदय'नाट्याचार्य वर्ष 1978 </ref>के अनुसार "महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री के छोटे भाई (अनुज) मेघनाथ भट्टाचार्य ने सन १९०४ ईस्वी में अपने पूर्वज विद्याधर पर एक बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी '''' साहित्य-परिषद्-पत्रिका'''' में प्रकाशित करवाई थी. इस विवरण को संवत १३२२ (सन [[१९१८]] ईस्वी ) में [[कलकत्ता]] के ज्ञानेंद्र मोहन दास ने अपनी बांगला-पुस्तक 'बगैर बाहिरे बांगाली' में भी शामिल किया था. इस विवरण के अनुसार : ''" यशोहर'' (जो [[बांगलादेश]] में आज का [[जैसोर]] है) ''के राजा विक्रमादित्य ने अपने पुत्र प्रतापादित्य को मुग़ल शासन की जानकारी करने के लिए [[आगरा]] भेजा था. जब वह आगरा पहुँचने से पहले कुछ दिन [[मथुरा]] में था, तो उसे वहां'' [[ग्रेनाइट]] की ''एक काली शिला मिली जिसके बारे में यह बात इतिहास में प्रसिद्ध थी कि यह शिला वही है, जिस पर एक के बाद एक पटक कर मथुरा के राजा [[कंस]] ने [[देवकी]] की सात संतानों को मार डाला था. कहा जाता है कि आठवीं संतान एक बालिका थी, और जब कंस ने इस शिला पर पटक कर उसे भी मौत के घाट उतारना चाहा तो वह उसके हाथों से छूट गयी. आकाशगामी हो कर उस [[योगमाया]] ने (अष्टभुजा देवी के रूप में प्रकट हो कर) कंस के वध की भविष्यवाणी की.''
|