रमण महर्षि को अनुप्रेषित
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|caption= रमण महर्षि लगपग 60 की आयु में
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[[चित्र:Sri Ramana Maharshi in 1902.jpg|thumbnail|सन १९०२ में युवा अवस्था में रमण महर्षि ]]
'''रमण महर्षि ''' (1879-1950) अद्यतन काल के महान ऋषि और संत थे। उन्होंने आत्म विचार पर बहुत बल दिया। उनका आधुनिक काल में भारत और विदेश में बहुत प्रभाव रहा है।<ref group=web name="beasyouare">[http://bhagavan-ramana.org/meditationandconcentration.html David Godman, ''Meditation and concentration'', from ''Be As You Are: The Teachings of Sri Ramana Maharshi'']</ref>
 
रमण महर्षि ने [[अद्वैतवाद]] पर जोर दिया। उन्होंने उपदेश दिया कि परमानंद की प्राप्ति 'अहम्‌' को मिटाने तथा अंत:साधना से होती है। रामन ने संस्कृत, मलयालम, एवं तेलुगु भाषाओं में लिखा। बाद में आश्रम ने उनकी रचनाओं का अनुवाद पाश्चात्य भाषाओं में किया।
 
== परिचय ==
वकील सुंदरम्‌ अय्यर और अलगम्मल को 30 दिसंबर, 1879 को [[तिरुचुली]], मद्रास में जब द्वितीय पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तो उसका नाम वेंकटरमन रखा गया। रमण की प्रारंभिक शिक्षा तिरुचुली और दिंदिगुल में हुई। उनकी रुचि शिक्षा की अपेक्षा [[मुष्टियुद्ध]] व [[मल्लयुद्ध]] जैसे खेलों में अधिक थी तथापि धर्म की ओर भी उनका विशेष झुकाव था।<ref group=web name="beasyouare">[http://bhagavan-ramana.org/meditationandconcentration.html David Godman, ''Meditation and concentration'', from ''Be As You Are: The Teachings of Sri Ramana Maharshi'']</ref><ref group=web name="autogenerated2">[http://www.davidgodman.org/rteach/jd1.shtml An Introduction to Sri Ramana's Life and Teachings. David Godman talks to John David]</ref>
 
लगभग 1895 ई. में अरुचल ([[तिरुवन्नमलै]]) की प्रशंसा सुनकर रामन अरुंचल के प्रति बहुत ही आकृष्ट हुए। वे मानवसमुदाय से कतराकर एकांत में प्रार्थना किया करते। जब उनकी इच्छा अति तीव्र हो गई तो वे तिरुवन्नमलै के लिए रवाना हो गए ओर वहाँ पहुँचने पर शिखासूत्र त्याग कौपीन धारण कर सहस्रस्तंभ कक्ष में तपनिरत हुए। उसी दौरान वे तप करने पठाल लिंग गुफा गए जो चींटियों, छिपकलियों तथा अन्य कीटों से भरी हुई थी। 25 वर्षों तक उन्होंने तप किया। इस बीच दूर और पास के कई भक्त उन्हें घेरे रहते थे। उनकी माता और भाई उनके साथ रहने को आए और पलनीस्वामी, शिवप्रकाश पिल्लै तथा वेंकटरमीर जैसे मित्रों ने उनसे आध्यात्मिक विषयों पर वार्ता की। संस्कृत के महान्‌ विद्वान्‌ गणपति शास्त्री ने उन्हें 'रामनन्‌' और 'महर्षि' की उपाधियों से विभूषित किया।<ref group=web>[http://www.johnrfyfe.com/mooltrikona.com/mosteffectpoint.htm Mooltrikona, ''MOST EFFECTIVE POINT'']</ref> at 18d 37' in the [[Nakshatra|Hasta naksatra]], and with the natal Moon<ref group=web>[http://www.astrologyweekly.com/astrology-articles/moon-psyche.php Acharya Bharat, ''The Moon: The Psyche. Vedic Astrology perspective'']</ref>
 
1922 में जब रमण की माता का देहांत हो गया तब आश्रम उनकी समाधि के पास ले जाया गया। 1946 में रमण महर्षि की स्वर्ण जयंती मनाई गई। यहाँ महान्‌ विभूतियों का जमघट लगा रहता था। असीसी के संत फ्रांसिस की भाँति रामन सभी प्राणियों से - गाय, कुत्ता, हिरन, गिलहरी, आदि - से प्रेम करते थे।
 
14 अप्रैल, 1950 की रात्रि को आठ बजकर सैंतालिस मिनट पर जब महर्षि रमण महाप्रयाण को प्राप्त हुए, उस समय आकाश में एक तीव्र ज्योति का तारा उदय हुआ एवं अरुणाचल की दिशा में अदृश्य हो गया।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
{{wikiquote}}
'''Ashrams and organisations'''
* [http://www.sriramanamaharshi.org/ श्री रमण आश्रम, भारत]
* [http://www.arunachala.org/ अरुणांचल आश्रम, यु.एस.ए.]
* [http://www.ramanacentre.com रमण महर्षि सेंटर फॉर लर्निंग]
 
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{{Persondata
| NAME = Maharshi, Ramana
| ALTERNATIVE NAMES =
| SHORT DESCRIPTION = Indian guru
| DATE OF BIRTH = 29 December 1879
| PLACE OF BIRTH = [[Tiruchuli|Tiruchuzhi]]
| DATE OF DEATH = 14 April 1950
| PLACE OF DEATH = [[Sri Ramana Ashram]] in Arunachala
}}
{{हिन्दू धर्म}}
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
[[श्रेणी:भारतीय संत]]
[[श्रेणी:हिन्दू गुरु]]