"सद्दाम हुसैन": अवतरणों में अंतर

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सद्दाम हुसैन पर शियाओं के साथ भेदभाव करने का आरोप है। 1982 में एक बार दुजैल गांव में उनके ऊपर हमला हुआ था। जिसके जवाब में उन्होंने वहां 148 शियाओं की हत्या करवा दी। वही फैसला आज उनकी फांसी का कारण बना। इसी तरह कुर्दों के ऊपर भी उनके जुल्मों की कथाएं कम दर्दनाक नहीं हैं। हालांकि दस वर्ष तक वह लगातार ईरान से लड़ते रहे, जिससे उनकी छवि एक जुझारू लड़ाके की बनी लेकिन उनकी उलटी गिनती तब शुरू हुई जब उन्होंने 1990 में कुवैत पर कब्जा कर लिया। इससे वह अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों की नजरों में आ गए और जल्दी ही खाड़ी युद्ध शुरू हो गया। 42 दिन के युद्ध के बाद इराक अमेरिकी गठबंधन सेनाओं से पराजित तो हुआ पर सद्दाम हुसैन नहीं झुके। इसी वजह से बार-बार अमेरिका को लगता रहा कि वह फिर चुनौती बन सकते हैं। लिहाजा उनके खिलाफ 2003 में फिर युद्ध हुआ और उसके बाद की कहानी हमारे सामने है। वह एक तानाशाह तो थे लेकिन जिस तरह से उन्होंने खुद को अंतरराष्ट्रीय फलक पर पेश किया और अमेरिका के आगे नहीं झुके, उसने उहें वाकई अरब जगत का नायक बना दिया। देखना यह है कि उन्हें इतिहास किस तरह याद रखता है
जब किसी देश के राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री पर जानलेवा हमला होता है, तो स्वाभाविक है कि वह हमला किसी न किसी हमलावर के द्वारा ही हुआ है। हमलावर को पकड़ना भी बेहद जरूरी हो जाता है क्योंकि खुला दुश्मन बेहद खतरनाक साबित होता है। यही सद्दाम हुसैन ने भी किया उन्होने हमला करने वाले आरोपियों के साथ-साथ उनके सारे गिरोह को भी मौत की सजा दी, जो हर देश करता है।
यदि अमेरिका के संदर्भ में बात करें तो सारी दुनिया इस बात से परिचित है,कि अमेरिका एक अद्वितीय शक्ति के रूप में सारे विश्व के सामने उभरना चाहता है। जो अमेरीका का एक मात्र सपना है। यदि हम इतिहास में जाकर देखें तो हमें पता चलता है कि अमेरिका ने हर उस ताकत को खत्म करने की कोशिश की है जिसे वह भविष्य में अपने आप से मज़बूत होते हुए देखता था। आज सद्दाम हुसैन को ज़ालिम कहने वालों की आबादी ज़्यादा हो गई है। मेरे सवाल है उन सेकुलर लोगों से कहां थी वह इंसानियत जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी के अनगिनत लोगों को मौत की नींद सुला दिया था।
 
== सन्दर्भ ==