"गाथासप्तशती": अवतरणों में अंतर

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गाथासप्तशती का उल्लेख [[बाणभट्ट]] ने [[हर्षचरित]] में इस प्रकार किया है:
 
:'''अविनाशिनमग्राह्यमकरोत्सातवाहन: ।'''
:'''विशुद्ध जातिभि: कोषं रत्नेखिसुभाषितै: ।।''' (ह. च.हर्षचरित 13)
 
'''विशुद्ध जातिभि: कोषं रत्नेखिसुभाषितै: ।।''' (ह. च. 13)
 
इसके अनुसार [[सातवाहन]] ने सुंदर सुभाषितों का एक कोश निर्माण किया था। आदि में यह कोश सुभाषितकोश या गाथाकोश के नाम से ही प्रसिद्ध था। बाद में क्रमश: सात सौ गाथाओं का समावेश हो जाने पर उसकी सप्तशती नाम से प्रसिद्धि हुई। सातवाहन, शालिवाहन या हाल नरेश भारतीय कथासाहित्य में उसी प्रकार ख्यातिप्राप्त हैं जैसे [[विक्रमादित्य]]। [[वात्स्यायन]] तथा [[राजशेखर]] ने उन्हें कुंतल का राजा कहा है और [[सोमदेव]]कृत [[कथासरित्सागर]] के अनुसार वे नरवाहनदत के पुत्र थे तथा उनकी राजधानी प्रतिष्ठान (आधुनिक पैठण) थी। पुराणों में आंध्र भृत्यों की राजवंशावली में सर्वप्रथम राजा का नाम सातवाहन तथा सत्रहवें नरेश का नाम हाल निर्दिष्ट किया गया है। इन सब प्रमाणों से हाल का समय ईसा की प्रथम दो, तीन शतियों के बीच सिद्ध होता है और उस समय गाथा सप्तशती का कोश नामक मूल संकलन किया गया होगा। [[राजशेखर]] के अनुसार सातवाहन ने अपने अंत:पुर में प्राकृत भाषा के ही प्रयोग का नियम बना दिया था। एक जनश्रुति के अनुसार उन्हीं के समय में [[गुणाढ्य]] द्वारा पैशाची प्राकृत में [[बृहत्कथा]] रची गई, जिसके अब केवल संस्कृत रूपांतर [[बृहत्कथामंजरी]] तथा [[कथासरित्सागर]] मिलते हैं।