"ऋतुसंहार": अवतरणों में अंतर
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'''ऋतुसंहार''' [[कालिदास]] का एक विख्यात काव्य है। ऋतुसंहार महाकवि कालिदास की प्रथम काव्यरचना मानी जाती है, जिसके छह सर्गो में [[ग्रीष्म]] से आरंभ कर [[वसंत]] तक की छह [[ऋतु|ऋतुओं]] का सुंदर प्रकृतिचित्रण प्रस्तुत किया गया है। ऋतुसंहार का कलाशिल्प महाकवि की अन्य कृतियों की तरह [[उदात्त]] न होने के कारण इसके कालिदास की कृति होने के विषय में संदेह किया जाता रहा है। [[मल्लिनाथ]] ने इस काव्य की टीका नहीं की है तथा अन्य किसी प्रसिद्ध टीकाकार की भी इसकी टीका नहीं मिलती है। जे. नोबुल तथा प्रो.ए.बी. कीथ ने अपने लेखों में ऋतुसंहार को कालिदास की ही प्रामाणिक एवं प्रथम रचना सिद्ध किया है।
'ऋतुसंहार' का शाब्दिक अर्थ है- ऋतुओं का संघात या समूह। इस [[
कवि ने ऋतु-चक्र का वर्णन ग्रीष्म से आरंभ कर प्रावृट् (वर्षा), शरद्, हेमंत व शिशिर ऋतुओं का क्रमशः दिग्दर्शन कराते हुए प्रकृति के सर्वव्यापी सौंदर्य माधुर्य एवं वैभव से सम्पन्न [[वसंत]] ऋतु के साथ इस कृति का समापन किया है। प्रत्येक ऋतु के संदर्भ में कवि ने न केवल संबंधित कालखंड के प्राकृतिक वैशिष्ट्य, विविध दृश्यों व छवियों का चित्रण किया गया है बल्कि हर ऋतु में प्रकृति-जगत् में होनेवाले परिवर्तनों व प्रतिक्रियाओं के युवक-युवतियों व प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रणय-जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का भी रोमानी शैली में निरूपण व आकलन किया है। प्रकृति के प्रांगण में विहार करनेवाले विभिन्न पशु-पक्षियों तथा नानाविध वृक्षों, लताओं व फूलों को भी कवि भूला नहीं है। कवि भारत के प्राकृतिक वैभव तथा जीव जन्तुओं के वैविध्य के साथ-साथ उनके स्वभाव व प्रवृत्तियों से भी पूर्णतः परिचित है। प्रत्येक सर्ग के अंतिम पद्य में कवि ने संबोधित ऋतु के अपने समस्त वैभव व सौंदर्यपूर्ण उपादानों के साथ सभी के लिए मंगलकारी होने का अभ्यर्थना की है।
ऋतुसंहार का सर्वप्रथम संपादन [[कोलकाता|कलकत्ता]] से सन् १७९२ में [[विलियम
== इन्हें भी देखें ==
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