"जानकीहरण (महाकाव्य)": अवतरणों में अंतर
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सर्गक्रम से इसकी कथा इस प्रकार है :
*'''प्रथम सर्ग'''
*'''द्वितीय सर्ग''' - बृहस्पति द्वारा ब्रह्मा से सहायता माँगते समय रावण के चरित्र का वर्णन;
*'''तृतीय सर्ग''' - राजा दशरथ की जलक्रीड़ा एवं संध्यावर्णन;
*'''चतुर्थ-पंचम-सर्ग''' - रामजन्म से सुबाहुवध तक का वर्णन;
*'''षष्ठ सर्ग''' - विश्वामित्र का राम-लक्ष्मण-सहित जनकपुर गमन एवं जनम-मिलन-वर्णन;
*'''सप्तम-अष्टम-सर्ग''' - राम-सीता विवाह आदि;
*'''नवम सर्ग''' - सबका अयोध्या आगमन;
*'''दशम सर्ग''' - दशरथ द्वारा राजनीति विवेचन, राम का यौवराज्याभिषेक, विविध घटनाएँ तथा अंत में जानकीहरण;
*'''एकादश सर्ग''' - बालिवध तथा वर्षा-वर्णन;
*'''द्वादश सर्ग''' - लक्ष्मण द्वारा सुग्रीव की भर्त्सना;
*'''त्रयोदश सर्ग''' - वानर-सेना-एकत्रीकरण;
*'''चतुर्दश सर्ग''' - सेतुबंध;
*'''पंचदश सर्ग''' - अंगद द्वारा रावणसभा में दौत्य;
*'''षोडश सर्ग''' - राक्षस केलि;
*'''सप्तदश से विंश सर्ग तक''' - युद्ध तथा रावणपराजय।
शेष सर्गो में [[अयोध्या]] आगमन तथा राज्यभिषेक वर्णित रहा होगा।
अंतिम पद्यों के विवेचन से ज्ञात होता है कि इस महाकाव्य के रचयिता का नाम 'कुमारदास' था, जिन्हें कुमारभट्ट या कुमार भी कहा जाता है। ये सिंहलद्वीप के राजा थे। इनके पिता का नाम कुमारमणि था। कुमारदास की ख्याति भारतवर्ष में पर्याप्त थी। [[जल्हण]] (१२५० ई.) ने अपनी [[सूक्तिमुक्तावली]] में 'जानकीहरण' के अनेक श्लोक उद्धृत किए हैं। [[राजेश्वर]] (९२० ई.) ने कुमारदास के 'जानकीहरण' की सुश्लिष्ट उक्ति द्वारा प्रशंसा की है :
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