"जन्मपत्री": अवतरणों में अंतर

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अथर्व ज्योतिष में दसवाँ कर्म नक्षत्र है। आधुनिक पद्धति में भी दशम स्थान कर्म है। इससे सिद्ध है कि अथर्व ज्योतिष में नौ स्थान वर्तमान कुंडली के बारह स्थानों के किसी न किसी स्थान में अंतर्भुक्त हो जाते हैं जो मेष आदि संज्ञाओं के प्रचार में अने के पहले ही से हमारी फलादेश पद्धति में विद्यमान थे। पूर्व क्षितिज में लगनेवाले नक्षत्रों को लग्न नक्षत्र मानने का वर्णन ३३०० वर्ष प्राचीन [[वेदांग ज्योतिष]] में भी है। जैसे,- ''श्रविष्ठाभ्यो गुणाभ्यस्तान् प्राग्विलग्नान् विनिर्दिशेनद''। अर्थात् गुण (तीन) तीन की गणना कर घनिष्ठा से पूर्व क्षितिज में लगे नक्षत्रों को बताना चाहिए। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय २७ नक्षत्रों में तीन तीन भाग करके नक्षत्र चक्र के नव भाग किए गए थे। अथर्व ज्योतिष के नव विभागों का सामंजस्य इससे हो जाता है।
 
==द्वादश भाव==
जिस तरह आकाश मण्डल में बारह राशियां हैं, वैसे ही वर्तमान समय में कुंडली में बारह भाव (द्वादश भाव) होते हैं। जन्म कुंडली या जन्मांग चक्र में किसी के जन्म समय में आकाश की उस जन्म स्थान पर क्या स्थिति थी, इसका आकाशी नक्श है। बारह खानों का चार्ट जन्मांग में बनाया जाता है। हिन्दू ज्योतिष इनको " भाव " कहते हैं। अंग्रेजी में 'हाऊस` और फारसी में 'खाना` कहते हैं। ये कई शैलियों में बनाये जाते हैं। उत्तर एवं दक्षिण भारत में प्रयोग में लाये जाने वाले जन्मकुण्डली चित्र-
 
{| align="center"
| valign="top"| [[चित्र:Birth Chart (northern format).png|frame|उत्तर भारतीय]]
| valign="top" | [[चित्र:Birth Chart (southern).png|frame|दक्षिण भारतीय]]
| valign="top" |<!-- Deleted image removed: [[File:Birth Chart (Sinhalese).png|frame|Sinhalese|{{deletable image-caption|1=tuesday, 23 october 1984}}]] -->
|}
 
अब आचार्यों द्वारा इन बारह भावों के विभिन्न नाम एवं उनसे संबंधित विषयों का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
 
'''प्रथम भाव''' : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक , चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य का विचार होता है।
 
'''द्वितीय भाव''' : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।
 
'''तृतीय भाव''' : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, अपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध,पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि पर विचार करते है।
 
'''चतुर्थ भाव''' : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक , चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख का विचार करते है।
 
'''पंचम भाव''' : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।
 
'''षष्ट भाव''' : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय,त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग,क्रूर कर्म आदि का विचार होता है।
 
'''सप्तम भाव''' : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, सांझेदारी के व्यापार आदि पर विचार किया जाता है।
 
'''अष्टम भाव''' : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि का विचार होता है।
 
'''नवम भाव''' : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप,शुद्धाचरण, यश,ऐश्वर्य,वैराग्य आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत होता है।
 
'''दशम भाव''' : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुषृय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।
 
'''एकादश भाव''' : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि का विचार होता है।
 
'''द्वादश भाव''' : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश ।इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश , दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि का विचार किया जाता है।
 
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