"आंग सान सू की": अवतरणों में अंतर

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'''आंग सान सू की''' [[म्यांमार]] (बर्मा) में लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रही प्रमुख राजनेता हैं। [[१९ जून]] [[१९४५]] को रंगून में जन्मी आंग सान लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई प्रधानमंत्री, प्रमुख विपक्षी नेता और म्यांमार की नेशनल लीग फार डेमोक्रेसी की नेता हैं। आंग सान को १९९० में राफ्तो पुरस्कार व विचारों की स्वतंत्रता के लिए सखारोव पुरस्कार से और १९९१ में [[नोबेल शांति पुरस्कार]] प्रदान किया गया है। १९९२ में इन्हें अंतर्राष्ट्रीय सामंजस्य के लिए भारत सरकार द्वारा [[जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया। लोकतंत्र के लिए आंग सान के संघर्ष का प्रतीक बर्मा में पिछले २० वर्ष में कैद में बिताए गए १४ साल गवाह हैं। बर्मा की सैनिक सरकार ने उन्हें पिछले कई वर्षों से घर पर नजरबंद रखा हुआ था। इन्हें १३ नवंबर २०१० को रिहा किया गया है। <ref>{{cite web| url = http://navbharattimes.indiatimes.com/thoughts-platform/focus/--/articleshow/6921100.cms |title =संघर्ष के मायने बदलतीं 'आंग सान सू की' ||publisher = [[नवभारत टाइम्स]] |date = 14 नवम्बर 2010, 02.14AM IST |accessdate = 7 जून 2013}}</ref>
== निजी ज़िंदगी ==
आंग सान सू १९ जून १९४५ को [[रंगून]] में पैदा हुईं थीं। इनके पिता आंग सान ने आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी और [[संयुक्त राजशाही|युनाईटेड किंगडम]] से १९४७ में बर्मा की स्वतंत्रता पर बातचीत की थी। इसी साल उनके प्रतिद्वंद्वियों ने उनकी हत्या कर दी। वह अपनी माँ, खिन कई और दो भाइयों आंग सान लिन और आंग सान ऊ के साथ रंगून में बड़ी हुई।