"अपस्फीत शिरा": अवतरणों में अंतर

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अपस्फीत शिरा उन व्यक्तियों में पाई जाती हे जिनको बहुत समय तक खड़े होकर काम करना या चलना पड़ता है। बहुत बार एक ही परिवार के कई व्यक्तियों में यह दशा पाई जाती हैं। अपस्फीत शिरा में रोगी में चर्म के नीचे नीले रंग की फूली हुई वाहिनियों के गुच्छे दिखाई पड़ते हैं। रोगी के लेट जाने पर वे मिट जाते हैं और उसके खड़े होने पर वे फिर उभड़ आते हैं। उनके कारण रोगी के पैरों में भारीपन और थकावट प्रतीत हाती है। कभी-कभी [[खुजली]] भी होती है और चर्म पर व्रण या पामा ([[एक्ज़िमा]]) उत्पन्न हो जाता है।
 
ऐसी शिराओं को कम करने के लिए रबड़ की लचीली पट्टियाँ पावों की ओर से आरंभ करके ऊपर की ओर को जंघे तक बाँधी जाती हैं। दशा उग्र न होने पर शिराओं के भीतर इंजेक्शन देने से लाभ होता है ।है। जब शिराएँ अधिक विस्तृत हो जाती हैं तो शल्यकर्म द्वारा उनको निकालना आवश्यक होता हैं। बहुत बार इंजेक्शन चिकित्सा और शल्यकर्म दोनों करने पड़ते हैं।
 
जिन मुख्य शिराओं से अपस्फीत शिराओं में रक्त जाता है उनका शल्यकर्म द्वारा बंधन कर दिया जाता है। यदि गहरी शिराओं में [[धनास्रता]] (थ्रोंबोसिस) होती है तो इंजेकशन चिकित्सा या [[शल्यकर्म]] नहीं किया जाता।