"अंकुश कृमि": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[[चित्र:Hookworm LifeCycle.gif|right|thumb|300px|अंकुश कृमि का जीवन-चक्र]]
इनकी दो जातियाँ होती हैं, नेकटर अमेरिकानस और एन्क्लोस्टोम डुओडिनेल। दोनों ही प्रकार के कृमि सब जगह पाए जाते हैं। नाप में मादा कृमि 10 से लेकर 13 मिलीमीटर तक लंबी और लगभग 0.6 मिलीमीटर व्यास की होती है। नर थोड़ा छोटा और पतला होता है। मनुष्य के अंत्र में पड़ी मादा कृमि अंडे देती हैं जो बिष्ठा के साथ बाहर निकलते हैं। भूमि पर [[बिष्ठा]] में पड़े हुए अंडे ढोलों (लार्बी) में परिणत हो जाते हैं , जो केंचुल बदलकर छोटे-छोटे कीड़े बन जाते हैं। किसी व्यक्ति का पैर पड़ते ही ये कीड़े उसके पैर की अंगुलियों के बीच की नरम त्वचा को या बाल के सूक्ष्म द्विद्र को छेदकर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। वहाँ [[रुधिर]] या [[लसीका]] की धारा में पड़कर वे [[हृदय]], [[फेफड़ा|फेफड़े]] और वायु प्रणाली में पहुँचते हैं और फिर [[ग्रास नलिका]] तथा [[आमाशय]] में होकर अँतरियों में पहुँच जाते हैं। गंदा जल पीने अथवा संक्रमित भोजन करने से भी ये कृमि अंत्र में पहुँच जाते हैं। वहाँ पर तीन या चार सप्ताह के पश्चात् मादा अंडे देने लगती है। ये कृमि अपने अंकुश से अंत्र की भित्ति पर अटके रहते हैं और रक्त चूसकर अपना भोजन प्राप्त करती हैं। ये कई महीने तक जीवित रह सकते हैं। परंतु साधारणत: एक व्यक्ति में बार-बार नए कृमियों का प्रवेश होता रहता है और इस प्रकार कृमियों का जीवन चक्र और व्यक्ति का रोग दोनों ही चलते रहते हैं।
 
== लक्षण ==