"गान्धार कला": अवतरणों में अंतर
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{{आज का आलेख}}[[चित्र:Gandhara Buddha (tnm).jpeg|thumb|240px|right|भगवान बुद्ध की सुन्दर मूर्ति]]
[[गांधार कला]] एक प्रसिद्ध प्राचीन [[भारतीय कला]] है। इस कला का उल्लेख वैदिक तथा बाद के [[संस्कृत]] [[साहित्य]] में मिलता है। सामान्यतया गान्धार शैली की मूर्तियों का समय पहली शती ईस्वी से चौथी शती ईस्वी के मध्य का है तथा इस शैली की श्रेष्ठतम रचनाएँ ५० ई० से १५० ई० के मध्य की मानी जा सकती हैं। गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय थी, परन्तु कला शैली [[यूनान|यूनानी]] और [[रोम|रोमन]] थी। इसलिए गांधार कला को ग्रीको-रोमन, ग्रीको बुद्धिस्ट या हिन्दू-यूनानी कला भी कहा जाता है। इसके प्रमुख केन्द्र जलालाबाद, हड्डा, बामियान, स्वात घाटी और [[पेशावर]] थे। इस कला में पहली बार बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं।
इनके निर्माण में सफेद और काले रंग के पत्थर का व्यवहार किया गया। गांधार कला को [[महायान]] धर्म के विकास से प्रोत्साहन मिला। इसकी मूर्तियों में मांसपेशियाँ स्पष्ट झलकती हैं और आकर्षक वस्त्रों की सलवटें साफ दिखाई देती हैं। इस शैली के शिल्पियों द्वारा वास्तविकता पर कम ध्यान देते हुए बाह्य सौन्दर्य को मूर्तरूप देने का प्रयास किया गया। इसकी मूर्तियों में भगवान बुद्ध यूनानी देवता [[अपोलो]] के समान प्रतीत होते हैं। इस शैली में उच्चकोटि की नक्काशी का प्रयोग करते हुए प्रेम, करुणा, वात्सल्य आदि विभिन्न भावनाओं एवं अलंकारिता का सुन्दर सम्मिश्रण प्रस्तुत किया गया है। इस शैली में आभूषण का प्रदर्शन अधिक किया गया है। इसमें सिर के बाल पीछे की ओर मोड़ कर एक जूड़ा बना दिया गया है जिससे मूर्तियाँ भव्य एवं सजीव लगती है। [[कनिष्क]] के काल में गांधार कला का विकास बड़ी तेजी से हुआ। [[भरहुत]] एवं [[सांची]]में कनिष्क द्वारा निर्मित [[स्तूप]] गांधार कला के उदाहरण हैं।<ref>{{cite book |last=सिंह |first=विजयशंकर |title= भारतवर्ष का इतिहास |year=जुलाई २००५ |publisher=भारती सदन |location=कोलकाता |id= |page=७१ |accessday= २२|accessmonth= मई|accessyear= २००४}}</ref>
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