"अर्धसूत्रीविभाजन": अवतरणों में अंतर

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[[इंटरफ़ेज़]] की तीन अवस्थाएं होती हैं-
* '''[[विकास 1 (G1) अवस्थाः|विकास 1 (G<sub>1</sub>) अवस्थाः]]''' यह एक अत्यंत सक्रिय अवस्था है, जिसमें कोशिका अपने विकास के लिये आवश्यक एंजाइमों और रचनात्मक प्रोटीनों सहित अपने सारे प्रोटीनों का संश्लेषण करती है. इस G<sub>1</sub> अवस्था में प्रत्येक क्रोमोसोम में डीएनए का एक एकल (बहुत लंबा) अणु होता है. मनुष्यों में, इस दशा में दैहिक कोशिकाओं के समान ही कोशिकाओं में '''46 क्रोमोसोम, 2N''' , होते हैं.
* '''[[संश्लेषण (S) अवस्थाः]]''' जीनीय पदार्थ दोहरा हो जाता है: प्रत्येक क्रोमोसोम की प्रतिकृति बनती है, जिससे दो सहोदरा क्रोमेटिडों से 46 क्रोमोसोम उत्पन्न होते हैं. कोशिका को अभी भी द्विगुणित ही माना जाता है क्यौंकि इसमें [[सेंट्रोमीयरों]] की संख्या यथातथित ही रहती है. एक समान दिखने वाले सहोदरा [[क्रोमेटिड]] लाइट माइक्रोस्कोप से देखे जा सकने वाले घने ऱूप में भरे हुए क्रोमोसोमों में अभी संघनित नहीं हुए होते हैं. ऐसा अर्धसूत्रीविभाजन के प्रोफेज़ I अवस्था में होता है.
* '''[[विकास 2 (G2) अवस्थाः|विकास 2 (G<sub>2</sub>) अवस्थाः]]''' G<sub>2</sub> अवस्था अर्धसूत्रीविभाजन में नहीं होती है.
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इसके बाद '''एनाफ़ेज़ II''' होता है,जिसमें सेन्ट्रोमीयर विदलित हो जाते हैं, जिससे गुणसुत्री विंदुओं से जुड़ी सूक्ष्मनलिकाएं सहोदरा क्रोमेटिडों को अलग खींचने लगती हैं. विपक्षी ध्रुवों की ओर बढ़ते सहोदरा क्रोमेटिडों को अब सहोदरा क्रोमोसोम कहा जाता है.
 
यह प्रक्रिया '''टीलोफ़ेज़ II''' , जो टीलोफ़ेज़ I के समान होती है, के साथ समाप्त हो जाती है और इसमें क्रोमोसोम खुलकर लंबे हो जाते हैं तथा तर्कु गायब हो जाता है. केन्द्रिक आवरण पुनः बनते और विभाजित होते हैं या कोशिका-भित्ति निर्माण अंततः कुल चार पुत्री कोशिकाओं की उत्पत्ति करता है, जिसमें प्रत्येक में क्रोमोसोमों का एक अगुणित सेट होता है. अर्धसूत्रीविभाजन अब पूर्ण हो जाता है और चार नई पुत्री कोशिकाएं उत्पन्न हो जाती हैं.
 
== महत्व ==