"उणादि सूत्र": अवतरणों में अंतर

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साथ ही उणादि के विश्लेषण का नियम बताते हुए कहा है-
 
: ''संज्ञासु धातुरूपाणि प्रत्ययाश्चत तत: परे। कार्याद्विद्यादनूबन्धमेतच्छज्ञस्त्रमुणादिषु ।कार्याद्विद्यादनूबन्धमेतच्छज्ञस्त्रमुणादिषु।''
 
अर्थात् जो संज्ञा सामने आए उसमें पहले कौन सी धातु हो सकती है इसे खोजें, तदनंतर प्रत्यय की खोज करें, फिर जो ह्रस्वत्व-दीर्घत्व आदि विकार हुआ है उसके विचार से अनुबंध लगा लें -- यह उणादि का शास्त्र है। कालांतर में उणादि नियमों के प्रयोग में सावधानी न रखने के कारण यह केवल [[वैयाकरण|वैयाकरणों]] को तोष देनेवाला ही हो सका जिससे इसकी उपयोगिता अपने समग्र रूप में सुव्यक्त न हो सकी।