"उदन्त मार्तण्ड": अवतरणों में अंतर
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|accessmonthday=[[२३ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएम|publisher=सृजनगाथा|language=}}</ref> यह पत्र पुस्तकाकार (१२x८) छपता था और हर [[मंगलवार]] को निकलता था। इसके कुल ७९ अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि डेढ़ साल बाद दिसंबर, १८२७ ई को इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।<ref>{{cite web |url=http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/K/KKYadav/bhoomandlikaran_ke_daur_mein_Hindi_Alekh.htm|title=भूमण्डलीकरण के दौर में हिन्दी|accessmonthday=[[२३ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएम|publisher=साहित्यकुंज|language=}}</ref> इसके अंतिम अंक में लिखा है-
उदन्त मार्तण्ड की यात्रा-
मिति पौष बदी १ भौम संवत् १८८४ तारीख दिसम्बर सन्
'''आज दिवस लौं उग चुक्यौ मार्तण्ड उदन्त'''
'''अस्ताचल को जात है दिनकर दिन अब
उन दिनों सरकारी सहायता के बिना, किसी भी पत्र का चलना प्रायः असंभव था। कंपनी सरकार ने [[इसाई मिशनरी|मिशनरियों]] के पत्र को तो डाक आदि की सुविधा दे रखी थी, परंतु चेष्टा करने पर भी "उदंत मार्तंड" को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। इस पत्र में [[ब्रज भाषा|ब्रज]] और [[खड़ीबोली]] दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक "मध्यदेशीय भाषा" कहते थे।
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