"उल्का": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Meteor burst.jpg|right|thumb|300px|आकाश के एक भाग में उल्का गिरने का दृष्य; यह दृष्य एक्स्ोजर समय कबढ़ाकर लिया गया है]]
 
[[आकाश]] में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा [[पृथ्वी]] पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें '''उल्का''' (meteor) और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं ।हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न [[ग्रह|ग्रहों]] इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं। इस प्रकार ये पिंड [[ब्रह्माण्डविद्या]] और [[भूविज्ञान]] के बीच संपर्क स्थापित करते हैं।
 
== संक्षिप्त इतिहास ==
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संरचना के आधार पर तीनों वर्गो में उपभेद किए जाते हैं। आश्मिक पिंडों में दो मुख्य उपभेद हैं जिनमें से एक को कौंड्राइट और दूसरे को अकौंड्राइट कहते हैं। पहले उपवर्ग के पिंड़ों का मुख्य लक्षण यह है कि उनमें कुछ विशिष्ट वृत्ताकार दाने, जिन्हें कौंड्रयूल कहते हैं, उपस्थित रहते हैं। जिन पिंड़ों में कौंड्रयूल उपस्थित नहीं रहते उन्हें अकौंड्राइट कहते हैं।
 
धात्विक उल्कापिंड़ों में भी दो मुख्य उपभेद हैं जिन्हें क्रमश: अष्टानीक (आक्टाहीड्राइट) और षष्ठानीक (हेक्साहीड्राइट) कहते हैं। ये नाम पिंडों की अंतररचना व्यक्त करते हैं, और जैसा इन नामों से व्यक्त होता है, पहले विभेद के पिंडों में धात्विक पदार्थ के बंध (प्लेट) अष्टानीक आकार में और दूसरे में षष्ठीनीक आकार में विन्यस्त होते हैं। इस प्रकार की रचना को विडामनस्टेटर कहते हैं एवं यह पिंड़ों के मार्जित पृष्ठ पर बड़ी सुगमता से पहचानी जा सकती है ।है।
 
धात्वाश्मिक उल्कापिंडों में भी दो मुख्य उपवर्ग हैं जिन्हें क्रमानुसार पैलेसाइट और अर्धधात्विक (मीज़ोसिडराइट) कहते हैं। इनमें से पहले उपवर्ग के पिंडों का आश्मिक अंग मुख्यत: औलीवीन खनिज से बना होता है जिसके स्फट प्राय: वृत्ताकार होते हैं और जो लौह-निकल धातुओं के एक तंत्र में समावृत्त रहते हैं। अर्धधात्विक उल्कापिंडों में मुख्यत: पाइरौक्सीन और अल्प मात्रा में एनौर्थाइट फ़ेल्सपार विद्यमान होते हैं।
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अभी तक उल्कापिंडों में केवल 52 रासायनिक तत्वों की उपस्थिति प्रमाणित हुई है जिनके नाम निम्नलिखित हैं:
 
। ऑक्सीजन। गंधक। प्लैटिनम। लोहा
। ऑक्सीजन । गंधक । प्लैटिनम । लोहा
 
। आर्गन गैलियम ।गैलियम। फ़ास्फ़ोरस वंग (राँगा)
 
आर्सेनिक जरमेनियम बेरियम वैनेडियम
 
इंडियम ज़िरकोनियम बेरीलियम ।बेरीलियम। सिलिकन
 
इरीडियमइरीडियम। । टाइटेनियम ।टाइटेनियम। मैंगनीज़ सीज़ियम
 
। ऐंटिमनी टेलूरियम मैगनीशियम सीरियम
 
ऐल्युमिनियम ।ऐल्युमिनियम। ताम्र मौलिबडेनम सीस (सीसा)
 
। कार्बन थूलियम यशद (जस्ता) । सोडियम
 
कैडमियम ।कैडमियम। नाइट्रोजन रजत (चाँदी) स्कैंडियम
 
कैल्सियमकैल्सियम। । निकल ।निकल। रुथेनियम स्वर्ण (सोना)
 
। कोबल्ट पारद रुबीडियम स्ट्रौंशियम
 
क्रोमियमक्रोमियम। पैलेडियम। पैलेडियम । रेडियम ।रेडियम। हाइड्रोजन
 
क्लोरीन ।क्लोरीन। पोटैसियम लीथियम ।लीथियम। हीलियम
 
इन 52 तत्वों में से केवल आठ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जिनमें हालों सबसे प्रमुख है। अन्य सात में क्रमानुसार [[ऑक्सिजन]], [[सिलिकन]], [[मैंगनीशियम]], [[गंधक]], [[ऐल्युमिनियम]], [[निकल]] और [[कैल्सियम]] हैं। इनके अतिरिक्त 20 अन्य तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं तथा उनकी उपस्थिति का पता साधारण रासायनिक विश्लेषण द्वारा 1926 से पूर्व ही लग चुका था। शेष 24 तत्व अत्यंत अल्प मात्रा में विद्यमान हैं एवं उनकी उपस्थिति वर्णक्रमदर्शकी (स्पेक्ट्रोग्रैफिक) विश्लेषण से सिद्ध की गई है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/उल्का" से प्राप्त