"किन्नर": अवतरणों में अंतर

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४: संस्कृत ग्रन्थों में किन्नरी वीणा का उल्लेख हुआ है।
 
महापंडित [[राहुल सांकृत्यायन]] ने किन्नौर जिसे वे प्रमाण के साथ प्राचीन ‘किन्नर देश’ मानते हैं, इस क्षेत्र की अनेक यात्राएँ की हैं और कई पुस्तकें लिखी हैं। किन्नर देश और किन्नर जाति का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व समझने के लिए उनकी बहुचर्चित पुस्तकें ‘किन्नर देश’ और ‘हिमाचल’ है। उनके अनुसार ‘यह किन्नर देश है। किन्नर के लिए किंपुरुष शब्द भी संस्कृत में प्रयुक्त होता है, अतः इसी का नाम किंपुरुष या किंपुरुषवर्ष भी है। किन्नर या किंपुरुष देवताओं की एक योनि मानी जाती थी। किन्नर देशियों को आजकल किन्नौर में किन्नौरा कहते है। पहले किन्नौर या किन्नर क्षेत्र बहुत विस्तृत था। कश्मीर से पूर्व नेपाल तक प्रायः सारा ही पश्चिमी हिमालय तो निश्चित ही किन्नर जाति का निवास था। चन्द्रभागा (चनाव) नदी के तट पर आज भी किन्नौरी-भाषा बोली जाती है। सुत्तपटिक के ‘विमानवत्थु (ईसापूर्व द्वितीय तृतीय सदी) में लिखा है- “चन्द्रभागानदी तीरे अहोसिं किन्नर तदा” -जिससे स्पष्ट है कि पर्वतीय भाग के चनाव के तट पर उस समय भी किन्नर रहा करते थे।’ ड़ा० बंशी राम शर्मा ने ‘किन्नर लोक साहित्य’ पुस्तक लिखी है जो किन्नर पर पहला शोध ग्रन्थ है। इस पुस्तक में अनेक प्रमाण देकर यह सिद्ध किया गया है कि वर्तमान किन्नौर में रहने वाले निवासी किन्नर जाति से सम्बन्धित हैं। महाकवि भारवि ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ किरातार्जुनीय महाकाव्य के हिमालय वर्णन खण्ड (पांचवा सर्ग, श्लोक १७) में किन्नर, गन्धर्व, यक्ष तथा अप्सराओं आदि देव-योनियों के किन्नर देश में निवास होने का वर्णन किया है। वायुपुराण में महानील पर्वत पर किन्नरों का निवास बताया गया है। डी.सी.सरकार (Cultural History from the Vayu Purana, 1946, Page 81) के अनुसार किंपुरुष-किन्नर भी आदिम जातियाँ थीं जो हेमकूट में निवास करती थी। मत्स्य पुराण के अनुसार किन्नर हिमवान पर्वत के निवासी हैं। डॉ० कन्हैया लाल माणिक लाल मुन्शी के अनुसार किन्नर हिमाचल पदेश के एक क्षेत्र में रहते हैं। महिलाओं को किन्नरियाँ कहा जाता है जो बहुत सुन्दर होती हैं। उन्हें किन्नर कंठी भी कहा गया है। हरिवंश पुराण में किन्नरियों को फूलों तथा पत्तों से श्रृंगार करते हुए बताया गया है जो गायन और नृत्यकला में अति दक्ष होती है। भीम ने शांतिपर्व में वर्णन किया है कि किन्नर बहुत सदाचारी होते हैं उन्हें अन्तःपुर में भृत्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। कार्तिकेय नगर हमेशा किन्नरों के मधुरगान से गुंजायमान रहता है।
 
महाभारत के दिग्विजय पर्व में अर्जुन का किन्नरों के देश में जाने का वर्णन आता है। ‘पराक्रमी वीर अर्जुन धवलगिरि को लांघ कर द्रुमपुत्र के द्वारा सुरक्षित किम्पुरुष देश में गए जहाँ किन्नरों का वास था। उन्होंने क्षत्रिय का भारी संग्राम के द्वारा विनाश करके उस देश को जीता था। चन्द्र चक्रवती ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘लिटरेरी हिस्टरी आफ एन्शियंट इंडिया’ में लिखा है कि किन्नर कुल्लू घाटी, लाहुल और रामपुर में सतलुज के पश्चिमी किनारे पर तिब्बत की सीमा के साथ रहते हैं। अजन्ता के भित्ति चित्रों में गुहृयकों किरातों तथा किन्नरों के चित्र भी हैं। इन चित्रों का ऐतिहासिक महत्व हैं जो ईसा की तृतीय से अष्टम शताब्दी के मध्य की धार्मिक तथा सामाजिक झाँकी प्रस्तुत करते हैं। किन्नरों के वर्णन बौद्ध ब्रन्थों में भी आते हैं। चन्द किन्नर जातक में बोधिसत्व के हिमालय प्रदेश में किन्नर योनि में जन्म लेने की बात कही गयी है। इस सन्दर्भ में इस ग्रन्थ में किन्नर और किन्नरियों की कई कथाएँ वर्णित है।