"गुरु दत्त": अवतरणों में अंतर

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उन पर बंगाली संस्कृति की इतनी गहरी छाप पड़ी कि उन्होंने अपने बचपन का नाम वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोणे से बदलकर गुरु दत्त रख लिया।
=== प्रारम्भिक प्रेरणा ===
गुरु दत्त की दादी नित्य शाम को दिया जलाकर आरती करतीं और चौदह वर्षीय गुरु दत्त दिये की रौशनी में दीवार पर अपनी उँगलियों की विभिन्न मुद्राओं से तरह तरह के चित्र बनाते रहते। यहीं से उनके मन में कला के प्रति संस्कार जागृत हुए। हालांकि वे अप्रशिक्षित थे, गुरु दत्त प्रेरित आवर्तनों का उत्पादन कर पाते और इसी तरह उन्होंने अपने उसे उत्तरार्द्ध से एक पेंटिंग पर आधारित है, एक साँप नृत्य प्रदर्शन फोटोग्राफ, उनके चाचा, बी बी बेनेगल राजी जब वह था के रूप में , वह कर सकता.उनकी यह कला परवान चढ़ी और उन्हें सारस्वत ब्राह्मणों के एक सामाजिक कार्यक्रम में पाँच रुपये का नकद पारितोषक प्राप्त हुआ।
जब गुरु दत्त 16 वर्ष के थे उन्होंने 1941 में पूरे पाँच साल के लिये 75 रुपये वार्षिक छात्रवृत्ति पर [[अल्मोड़ा]] जाकर नृत्य, नाटक व संगीत की तालीम लेनी शुरू। 1944 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण उदय शंकर इण्डिया कल्चर सेण्टर बन्द हो गया गुरु दत्त वापस अपने घर लौट आये।