"मन्त्र": अवतरणों में अंतर

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छो सन्दर्भ की स्थिति ठीक की।
पंक्ति 4:
 
== आध्यात्मिक ==
'''परिभाषा''': मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है। <ref>इसके पहले आप स्वामी वेद भारती की पुस्तक "मंत्र: क्यों और कैसे पढ़ लें.</ref>. यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो प्रकार हैं - नाद (शब्द) एवं प्रकाश। आध्यात्मिक धरातल पर इनमें से कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र मात्र वह ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं, यह ध्वनियाँ तो मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं.
 
ध्यान की उच्चतम अवस्था में साधक का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है जो अन्तर्यामी है. वही सारे ज्ञान एवं 'शब्द' (ॐ) का स्रोत है. प्राचीन ऋषियों ने इसे ''शब्द-ब्रह्म'' की संज्ञा दी - वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! उसी सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से एकाकार होकर साधक मनचाहा ज्ञान प्राप्त कर सकता है.