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'''कुरुक्षेत्र''' {{audio|Kurukshetra.ogg|उच्चारण}} ({{lang-en|Kurukshetra}})[[हरियाणा]] [[राज्य]] का एक प्रमुख जिला और उसका मुख्यालय है। यह [[हरियाणा]] के उत्तर में स्थित है तथा [[अम्बाला]], [[यमुना नगर]], [[करनाल]] और [[कैथल]] से घिरा हुआ है तथा [[दिल्ली]] और [[अमृतसर]] को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलमार्ग पर स्थित है। इसका शहरी इलाका एक अन्य एटिहासिक स्थल थानेसर से मिला हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण [[हिन्दू]] तीर्थस्थल है। माना जाता है कि यहीं [[महाभारत]] की लड़ाई हुई थी और [[भगवान कृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को [[गीता]] का उपदेश यहीं [[ज्योतिसर]] नामक स्थान पर दिया
==नामकरण==
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मुख्य उल्लेख : [[कुरुक्षेत्र युद्ध]]
कुरुक्षेत्र का इलाका [[भारत]] में आर्यों के आरंभिक दौर में बसने (लगभग 1500 ई. पू. ) का क्षेत्र रहा है और यह [[महाभारत]] की पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। इसका वर्णन [[भगवद्गीता]] के पहले श्लोक में मिलता है। इसलिए इस क्षेत्र को धर्म क्षेत्र कहा गया
आरम्भिक रूप में कुरुक्षेत्र [[ब्रह्मा]] की यज्ञिय वेदी कहा जाता था, आगे चलकर इसे समन्तपञ्चक कहा गया, जबकि [[परशुराम]] ने अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में क्षत्रियों के रक्त से पाँच कुण्ड बना डाले, जो पितरों के आशीर्वचनों से कालान्तर में पाँच पवित्र जलाशयों में परिवर्तित हो गये। आगे चलकर यह भूमि कुरुक्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई जब कि [[संवरण]] के पुत्र राजा कुरु ने सोने के हल से सात कोस की भूमि जोत डाली।<ref>आद्यैषा ब्रह्मणो वेदिस्ततो रामहृदा: स्मृता:। कुरुणा च यत: कृष्टं कुरुक्षेत्रं तत: स्मृतम्॥ वामन पुराण (22.59-60)। वामन पुराण (22.18-20) के अनुसार ब्रह्मा की पाँच वेदियाँ ये हैं-
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== पौराणिक महत्व ==
[[File:Hitopadesha.jpg|thumb|250px|right|[[महाभारत]] युद्ध की झांकी, कांस्य रथ भगवान [[कृष्णा]] और [[अर्जुन]]]]
कुरुक्षेत्र का पौराणिक महत्त्व अधिक माना जाता
इसका [[ऋग्वेद]] और [[यजुर्वेद]] मे अनेक स्थानो पर वर्णन किया गया है। यहां की पौराणिक नदी [[सरस्वती]] का भी अत्यन्त महत्व है। सरस्वती एक पौराणिक नदी जिसकी चर्चा वेदों में भी है। इसके अतिरिक्त अनेक पुराणो, स्मृतियों और महर्षि वेद व्यास रचित [[महाभारत]] में इसका विस्तृत वर्णन किया गया
कुरुक्षेत्र अम्बाला से 25 मील पूर्व में है। यह एक अति पुनीत स्थल है। इसका इतिहास पुरातन गाथाओं में समा-सा गया है। ऋग्वेद<ref>ऋग्वेद 10.33.4</ref>में त्रसदस्यु के पुत्र कुरुश्रवण का उल्लेख हुआ है। 'कुरुश्रवण' का शाब्दिक अर्थ है 'कुरु की भूमि में सुना गया या प्रसिद्ध।' [[अथर्ववेद]]<ref>अथर्ववेद 20.127.8</ref>में एक कौरव्य पति (सम्भवत: राजा) की चर्चा हुई है, जिसने अपनी पत्नी से बातचीत की है। ब्राह्मण-ग्रन्थों के काल में कुरुक्षेत्र अति प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल कहा गया है। [[शतपथ ब्राह्मण]]<ref>शतपथ ब्राह्मण 4.1.5.13</ref>में उल्लिखित एक गाथा से पता चलता है कि देवों ने कुरुक्षेत्र में एक यज्ञ किया था जिसमें उन्होंने दोनों अश्विनों को पहले यज्ञ-भाग से वंचित कर दिया था। मैत्रायणी संहिता<ref>मैत्रायणी संहिता 2.1.4, 'देवा वै सत्रमासत्र कुरुक्षेत्रे</ref>एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण<ref>तैत्तिरीय ब्राह्मण 5.1.1, 'देवा वै सत्रमासत तेषां कुरुक्षेत्रं वेदिरासीत्'</ref>का कथन है कि देवों ने कुरुक्षेत्र में सत्र का सम्पादन किया था। इन उक्तियों में अन्तर्हित भावना यह है कि ब्राह्मण-काल में वैदिक लोग यज्ञ-सम्पादन को अति महत्त्व देते थे, जैसा कि ऋग्वेद<ref>ऋग्वेद, 10.90.16</ref>में आया है- 'यज्ञेय यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यसन्।'
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==आवागमन==
*'''सड़क मार्ग''': यह [[राष्ट्रीय राजमार्ग १]] पर स्थित है। हरियाणा रोडवेज और अन्य राज्य निगमों की बसों से कुरुक्षेत्र पहुंचा जा सकता
*'''हवाई मार्ग''': कुरुक्षेत्र के करीब हवाई अड्डों में [[दिल्ली]] और [[चंडीगढ़]] हैं, जहां कुरुक्षेत्र के लिए टैक्सी और बस सेवा उपलब्ध है। [[करनाल]] मे नया हवाई अड्डा प्रस्तावित है।
*'''रेल मार्ग''' : कुरुक्षेत्र में रेलवे जंक्शन है, जो देश के सभी महत्वपूर्ण कस्बों और शहरों के साथ-साथ सीधा [[दिल्ली]] से जुड़ा है। यहाँ शताब्दी एक्सप्रेस रुकती है।
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