"कॉन-टिकी": अवतरणों में अंतर

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थूर हायरडॉह्ल ने अपनी बात सिद्घ करने के लिए आदियुगीन बालसा लकड़ी का बेड़ा (raft) बनाया। इसका नाम, दक्षिण अमेरिका में पुराने समय में प्रचलित सूर्य देवता के नाम पर कॉन-टिकी रखा गया। थौर अपने पांच अन्य साथियों के साथ, उसी के ऊपर, २८ अप्रैल १९४७ को पेरू से पॉलीनीसियन द्वीपों के लिए चल दिये। इसी नाव पर, उन्होने समुद्र में ३७७० नॉटिकल मील (६९८० किलोमीटर) लम्बी यात्रा की। 'कॉन-टिकी' (Kon-Tiki) पुस्तक में इस यात्रा का विवरण है।
 
बालसा लकड़ियों से बेड़े को बनाने में कोई नयी तकनीक नहीं प्रयोग की गयी थी। इसमें नये युग के समान में केवल एक रेडियो सेट था जिससे वे दुनिया से सम्पर्क कर सकते थे। इसके अतिरिक्त आधुनिक युग का कोई सामान नहीं था ।था। उन्होंने यह यात्रा उसी तरह से की जैसे पुराने समय में शायद की गयी होगी। रास्ते के लिये उनके पास २५० लीटर पानी, बांस की ट्यूब में था। खाने के लिये लौकी, कद्दू, नारियल, शकरकन्द और अन्य फल थे। रास्ते में उन्होंने मछलियां भी पकड़ीं। उन्होंने प्रतिदिन ५०-६० मील की दूरी तय की।
 
पॉलीनिसयन द्वीप में, सबसे पहले उन्हें पुलक Puka-Puka (पुका-पुका) नामक प्रवालद्वीप दिखायी पड़ा। ४ अगस्त को Angatan द्वीप के लोगों से संबंध स्थापित हुआ पर वे उस पर उतर नहीं पाये। Tumotus द्वीप समूह, पालीनोसिया का हिस्सा है। Raroia द्वीप, इसी समूह का द्वीप है। ७ अगस्त को Raroia के पास चट्टान से टकरा गये और वहीं उतर गये।