"जन्मपत्री": अवतरणों में अंतर
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अब आचार्यों द्वारा इन बारह भावों के विभिन्न नाम एवं उनसे संबंधित विषयों का विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
'''प्रथम भाव''' : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक
'''द्वितीय भाव''' : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।
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'''तृतीय भाव''' : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, अपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध,पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि पर विचार करते है।
'''चतुर्थ भाव''' : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक
'''पंचम भाव''' : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।
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'''एकादश भाव''' : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि का विचार होता है।
'''द्वादश भाव''' : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश ।इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश
==इन्हें भी देखें==
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